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उष्ट्रासन की विधि लाभ सावधानियां | Ustrasana Kaise Kare | उष्ट्रासन के फायदे | घेरंड संहिता के अनुसार उष्ट्रासन

उष्ट्रासन का नामकरण

उष्ट्रासन शरीर संवर्धनात्मक आसनों की श्रेणी में आने वाला एक प्रमुख आसन है। अधोमुख लेटकर और दोनों पांवों को पलटकर पीठ पर टिका लेते हैं तथा पांवों को हाथों से पकड़कर मुख और पांवों को दृढ़तापूर्वक सिकोड लेते हैं, यह आसन उष्ट्रासन कहलाता है। महर्षि घेरण्ड ने जिस उष्ट्रासन का वर्णन किया है, वह आजकल प्रचलित उष्ट्रासन से थोड़ा भिन्न है। उष्ट्र का अर्थ है- ऊँट। इस आसन में शरीर की स्थिति ऊँट की कूबड़ के समान हो जाती है इसलिए इसे उष्ट्रासन कहते हैं।

उष्ट्रासन की विधि

उष्ट्रासन के अभ्यास के लिए सर्वप्रथम वज्रासन में बैठते हैं। भुजाओं को बगल में रखते हुए घुटनों पर खड़े होते हैं। इस आसन में घुटनों से नीचे पैरों को जमीन पर टिकाते हैं घुटने और पैर आपस में मिले रहते हैं किन्तु यदि उन्हें अलग-अलग रखने में सुविधा का अनुभव हो तो अलग-अलग भी रख सकते हैं। पीठ को पीछे की ओर मोड़कर दायें हाथ से दायीं एडी तथा बाये हाथ से बायीं एडी को पकड़ते हैं।

How-to-do-Ustrasana

उष्ट्रासन की विधि लाभ एवं सावधानियां वीडियो देखें

इसमें एक बात का ध्यान रखना होता है कि जब इस प्रकार के आसन में खडे होते हैं तब एड़ियों के बीच कमर की चौड़ाई जितनी दूरी होनी चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि जाँघों के सामने का भाग, जहाँ तक हो सके सीधा रहे। जाँघों को घुटनों से कमर तक सीधा ही रखना है और कमर से ऊपर शरीर को मोड़ना है। इस स्थिति में आने के लिए आमाशय को जोर लगाकर सामने की ओर फैलाते हैं। इस अबस्था में सिर को पीछे ले जाते हैं। पूरे शरीर को विशेषकर मेरुदंड को शिथिल बनाने का प्रयास करते हैं। शरीर का भार समान रूप से हाथों एव पैरों पर रहना चाहिए। पीठ को चापाकार आकृति में बनाये रखने के लिए भुजाएँ कन्धों को अवलम्ब प्रदान करती हैं।

जब तक सुविधापूवेक इस अन्तिम स्थिति में रह सकते हैं, रहना चाहिए। तत्पश्चात् हाथों को एक-एक कर एड़ियों से हटाते हुए प्ररम्भिक स्थिति में आ जाते हैं। उष्ट्रासन का अभ्यास करते समय शरीर की आकृति ऊँट के कूबड़ के सदृश हो जाती है। बहुत बार जब हम श्वास रोककर सिर को पीछे ले जाते हैं तब मस्तिष्क में रक्त का दबाव अधिक हो जाता है, जिसके कारण कुछ लोगों को चक्कर आने लगता है। इसलिए यह निर्देश दिया जाता है कि इस आसन को करते समय अगर चक्कर आये तो सिर को सीधा ही रखना चाहिए और धीरे-धीरे कुछ दिनों तक अभ्यास करते-करते उसे पीछे ले जाना चाहिए।

उष्ट्रासन के लाभ

उष्ट्रासन का अभ्यास हृदय के मरीजों के लिए उतम आसन है, चाहे किसी भी प्रकार का हृदय रोग हो, क्योंकि इसमें जब हम पीछे झुकते हैं और हाथों को पीछे ले जाते हैं, तब हृदय से निकलने वाली सभी रक्त वाहिकाओं का विस्तार होता है। उष्ट्रासन के अन्य लाभ -

  • इस आसन में पीछे झुकने से कशेरुकाएं लचीला होती हैं व मेरुदण्ड के स्नायुओं का विस्तार होता है।
  • यह आसन पाचन एवं प्रजनन प्रणालियों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
  • उष्ट्रासन पीठदर्द, कटिवात, कूबड़ एवं झुके हुए कन्धों के उपचार में सहायक है।
  • यह उष्ट्रासन आमाशय का विस्तार करता है तथा कब्ज को भी दूर करता है।
  • रक्त नलिकाओं को मजबूत बनाने तथा उन्हें शक्ति प्रदान करने के लिए यह आसन बहुत उपयोगी है।
  • गर्दन के अग्रभाग का पूर्ण विस्तार होता है जिससे इस क्षेत्र के अंग स्वस्थ बनते हैं एवं थायराइड ग्रन्थि के कार्य में नियमितता आती है।

उष्ट्रासन की सावधानियां

उच्चरक्तचाप से पीड़ित व्यक्तियों को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए। पीठ के गम्भीर रोग, जैसे कटिवात से पीड़ित व्यक्तियों को विशेष निर्देशन में ही इस आसन को करना चाहिए। साथ ही जिनकी थायराइड ग्रन्थि अधिक बढ़ी हुई है, उन्हे भी इस आसन के दौरान सावधानी बरतनी चाहिए। उष्ट्रासन करते समय शरीर में ज़्यादा तनाव पैदा नहीं करना चाहिए एवं पेट से जुड़ी कोई गंभीर बीमारी हो तो भी उस दौरान उष्ट्रासन का अभ्यास नहीं करना।

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