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मानव चेतना का अर्थ एवं परिभाषा | Meaning of Human Consciousness | चेतना क्या है

चेतना क्या है

चेतना एक गूढ एवं व्यापक विषय है। इसका अंग्रेजी पर्याय कॉन्शियसनेस CONSCIOUSNESS है। अमेरिकी वैदिक मनीषी डॉ. डेविड फ्रॉअले के शब्दों में, यह सृष्टि की सबसे अद्भुत चीज है। इसकी गहराई और व्यापकता को कोई सीमा नहीं है। सामान्य रूप में चेतना का अभिप्राय चैतन्यता सजीवता आदि से होता है।

सृष्टि के प्रत्येक घटक के कण-कण में जो स्पन्दन, परिवर्तन, गतिशीलता दृष्टिगोचर हो रही है, इसके मूल में सक्रिय शक्ति चेतना ही है। विदुषी ऐनीबेसेन्ट चेतना को जीवन का पर्याय मानती हैं। उनके अनुसार- 'चेतना और जीवन एक ही तथ्य के दो पहलू हैं। बिना चेतना के जीवन सम्भव नहीं है और बिना जीवन के चेतना सम्भव नहीं है।' अतः जीवन की सक्रियता एवं चैतन्यता के मूल में विद्यमान शक्ति ही चेतना है। इसकी अभिव्यक्ति सृष्टि में दृश्यमान जीवन के विविध स्तरों में होती है।

चेतना का अर्थ एवं परिभाषा

चेतना का अंग्रेजी पर्याय कॉन्शियसनेस है जैसा की हमने ऊपर भी देखा। कॉन्शियसनेस शब्द लेटिन मूल के दो शब्द काॅन CON तथा सायर SCIRE से मिलकर बना है। इसका अर्थ है जिसके द्वारा हम जानते हैं। आधुनिक विज्ञान में इसका अर्थ 'बोध' या 'अभिज्ञा' AWARENESS से है। इस युग के प्रख्यात विज्ञानविद् रोजर पैनरोज के अनुसार- मैं चेतना को बोध AWARENESS के समानार्थी मानता हूँ, यद्यपि मन और आत्मा भी इसके अर्थ को व्यक्त करते हैं, किन्तु ये अभी स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है।

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कुछ विद्वान इसे सचेतना के रूप में प्रतिपादित करते हैं। उनके अनुसार चेतना उस मानसिक सक्रियता के पीछे निहित तत्व है, जिसके तीन अंग हैं- चिंतन THINKING, भावना FEELING तथा संकल्प WILLING किन्तु यह स्वयं तो चिंतन मात्र है, भावना और ही मात्र इच्छा। इन तीनों के मूल में निहित समान चैतन्यता का तत्व ही चेतना है।

प्रख्यात् विद्वान जेम्स हेस्टिंग्स के अनुसार चेतना अपरिभाषित है, सभी अंतिम परम सत्यों एवं तथ्यों की भांति इ्से उस सिद्धान्त के रूप में स्वीकार करना होगा जिससे कि अन्य सभी तथ्यों की व्याख्या की जा सकती है किन्तु यह स्वयं अव्याख्यायित ही रह जाती है। जिस प्रकार एक मशीन मात्र उसके पुर्जों का योग नहीं होती, अपितु इससे कुछ अधिक होती है। उसी प्रकार चेतना को उसकी विविध स्थितियों या स्तरों के योग के रूप में सीमित नहीं किया जा सकता। चेतना के विषय में सबसे सरल दृष्टिकोण यह है कि यह वह व्यापक पृष्ठभूमि है जिसके आधार पर जीवन के विविध तात्कालिक अनुभव आकार लेते हैं।

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मानवीय सभ्यता के इतिहास में विज्ञान, कविताएँ, इतिहास, साहित्य, दर्शन, धर्म आदि सब चेतना की गतिविधियों के ही परिणाम हैं। चेतना को तकनीकी उपयोगिता के आधार पर दो रूपों में विभाजित किया गया है-

जब तक एक व्यक्ति की मानसिक क्रियाएं चलती रहती हैं, उसे सचेतन माना जाता है और जब ये विचार, भाव, इच्छाएं आदि विलुप्त हो जाती हैं, तब उसे अचेतन कहा जाता है। इस संदर्भ में चेतना का अर्थ अनुभव और बोध से है।

दूसरा चेतना व्यक्ति की अपनी मानसिक क्रियाओं के प्रति सजगता का भी प्रतिनिधित्व करती है। अंतर्निरीक्षण द्वारा व्यक्ति अपने विचारों भावनाओं एवं अनुभवों से बहुत कुछ जान सकते हैं।

मनोविज्ञान में चेतन CONSCIOUS शब्द का अर्थ उस मानसिक स्थिति से है जिसमें वह संवेदन SENSATION और इन्द्रिय बोध PERCEPTION ग्रहण करता है। उत्प्रेरक के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। भाव एवं संवेग युक्त होता है। विचार, कल्पना आदि कर सकता है।उपर्यक्त चारों तथ्यों का बोध करता है।

इस तरह चेतना का सर्वसामान्य अर्थ सचेतनता या बोध AWARENESS से है। यही पश्चिमी चिंतन में मान्य चेतना की परिभाषा है। यह संवेदन, भाव, संकल्प या विचार द्वारा व्यक्त अस्तित्व की स्थिति है।

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