मुण्डकोपनिषद् का परिचय
मुण्डकोपनिषद् अथर्ववेद की शौनकीय शाखा का उपनिषद् है। इस उपनिषद् में तीन मुण्डक हैं, प्रत्येक मुण्डक में दो-दो खण्ड हैं तथा कुल चौंसठ मंत्र हैं। मुण्डकोपनिषद् को दस मुख्य उपनिषदों के श्रेणी में रखा गया है। उपनिषद् में 'मुण्डक' शब्द का तात्पर्य 'मन का मुण्डन कर अविद्या से मुक्त करने वाला ज्ञान' से है। मुण्डकोपनिषद् में महर्षि अङ्गिरा ने ऋषि शौनक को परा व अपरा विद्या समझायी है। भारत के राष्ट्रीय चिन्ह में अंकित 'सत्यमेव जयते' शब्द भी इसी उपनिषद् से लिया गया है।
प्रथम मुण्डक
मुण्डकोपनिषद् के प्रथम मुण्डक के प्रथम खण्ड में ब्रह्मविद्या की परम्परा के बाद ऋषि संवाद के रूप में परा व अपरा विद्या का विवेचन है एवं परा विद्या से ब्रह्मबोध तथा परमेश्वर से जगत की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है।
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द्वितीय एवं तृतीय मुण्डक
इस उपनिषद् के द्वितीय मुण्डक में अग्नि की चिनगारियों की तरह ब्रह्म से जगत् की उत्पत्ति एवं लय का वर्णन करते हुए ॐ कार रूपी धनुष एवं आत्मा रूपी बाण से परमात्मा का लक्ष्यवेध करना, ब्रह्म का स्वरूप एवं ब्रह्म प्राप्ति का महत्त्व है। मुण्डकोपनिषद् के अंतिम व तृतीय मुण्डक में शरीर रूपी एक ही वृक्ष पर जीवात्मा और परमात्मा रूपी दो पक्षियों के उदाहरण सहित अन्तःकरण की शुद्धि द्वारा ब्रह्म प्राप्ति तथा ब्रह्मवेत्ता की गति तथा महत्ता का वर्णन है। मुण्डकोपनिषद का परिचय इस प्रकार से प्राप्त होता है।
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