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संन्यासोपनिषद का परिचय | Sannyasa Upanishad in Hindi | संन्यासोपनिषद्

संन्यासोपनिषद का परिचय

संन्यासोपनिषद् सामवेद से सम्बद्ध उपनिषद् है। इस उपनिषद् में सन्यास विषय की विशद विवेचना की गयी है इसलिए इस उपनिषद् को संन्यासोपनिषद् के नाम से जाना जाता है। इस उपनिषद् में कुल दो अध्याय हैं। जिसके प्रथम अध्याय में संन्यास क्या है? सन्यास कैसे ग्रहण किया जाता है? एवं उसके लिए कैसा आचार-व्यवहार होना चाहिए आदि विषयों का विशद वर्णन किया गया है।

उपनिषद् का दूसरा अध्याय अति विशाल है। इसकी शुरुआत साधन चतुष्टय (विवेक, वैराग्य, षट्सम्पत्ति, मुमुक्षुत्व) से की गई है। संन्यास का अधिकारी कौन है? इसकी विस्तृत गवेषणा इस अध्याय में की गई है। संन्यासी का भेद बताते हुए- 1. वैराग्य संन्यासी, 2. ज्ञान संन्यासी, 3. ज्ञान-वैराग्य संन्यासी और 4. कर्म संन्यासी की विस्तृत व्याख्या की गई है। आगे चलकर छः प्रकार के संन्यास का क्रम उल्लिखित हुआ है- कुटीचक, बहूदक, हंस, परमहंस, तुरीयातीत और अवधूत। इस प्रकार से 6 प्रकार के सन्यास का वर्णन किया गया है।

Sannyasa Upanishad in Hindi

इसी क्रम में आत्मज्ञान की स्थिति और स्वरूप का भी वर्णन उपनिषद्कार ने कर दिया है। संन्यासी के लिए आचरण की पवित्रता और भिक्षा में मिले स्वल्प भोजन में ही संतुष्ट होने का विधान बताया गया है। उसे स्त्री, भोग आदि शारीरिक आनन्द प्राप्ति से दूर रहने का निर्देश है। इस प्रकार आहार-विहार का संयम बरतते हुए नित्य प्रति आत्म चिन्तन में तल्लीन रहना चाहिए। ॐकार का जप करते रहना चाहिए इसी से उसके अन्तःकरण में ब्रह्म का प्रकाश प्रकट होता है और वह मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी बनता है। संन्यासोपनिषद् का परिचय इस प्रकार से प्राप्त होता है।

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