केनोपनिषद् का परिचय
केनोपनिषद् सामवेदीय 'तलवकार ब्राह्मण' के नवें अध्याय के अन्तर्गत आता है। केनोपनिषद् को अन्य तलवकार उपनिषद् तथा ब्राह्मणोपनिषद् के नाम से भी जाना जाता है। केनोपनिषद् मुख्य दस उपनिषदों में से द्वितीय श्रेणी का उपनिषद् है। इस उपनिषद् का प्रारम्भ प्रश्न केनेषितं...... अर्थात् ‘यह जीवन किसके द्वारा प्रेरित है’ से हुआ है इसलिए इस उपनिषद को केनोपनिषद् के नाम से जाना जाता है। इसमें उस केन अर्थात् किसके द्वारा का विवेचन होने से इसे 'केनोपनिषद्' कहा गया है।
इस उपनिषद में सर्वप्रेरक उस परब्रह्म की महिमा और उसके स्वरूप का बोध कराते हुए ऋषि ने स्पष्ट किया है कि कहने व सुनने में ब्रह्म तत्व जितना सुगम है, अनुभूति में वह उतना ही दुरूह भी है।
प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ खंड
केनोपनिषद् के प्रथम एवं द्वितीय खण्ड में गुरु शिष्य संवाद के रूप में सुन्दर ढंग से उस प्रेरक सत्ता की विशेषताओं, उसकी अनुभूति तथा उसे जान लेने की अनिवार्य आवश्यकताओं का वर्णन किया गया है। अर्थात् प्रथम एवं द्वितीय खण्ड में ब्रह्म के स्वरुप के बारे में वर्णन किया गया है।
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तीसरे और चौथे खण्ड में देवताओं के अभिमान तथा मानमर्दन के लिए यक्ष रूप में ब्राह्मी चेतना के प्रकट होने का उपाख्यान है। बाद में उमादेवी द्वारा प्रकट होकर देवों के लिए ब्रह्म तत्त्व का वर्णन किया गया है। अन्त में परब्रह्म की उपासना के ढंग और फल का उल्लेख करते हुए ब्रह्मविद्या के संसाधनों के साथ उस रहस्य को जानने की महिमा का वर्णन है। केनोपनिषद का परिचय इस प्रकार से प्राप्त होता है।
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