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उपनिषद का अर्थ | उपनिषद क्या हैं | Introduction of Upanishads | मुख्य उपनिषद

उपनिषद क्या हैं

सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ उपनिषद् हैं। ये वैदिक वाङ्मय के अभिन्न भाग हैं। वेद का अर्थ होता है- जाननाबोध या ज्ञान। विद्वानों ने संहिताब्राह्मणआरण्यक तथा उपनिषद् इन तीनों के संयोग को समग्र वेद कहा है। उपनिषद् भारतीय दर्शन जगत में प्रसिद्ध ‘प्रस्थानत्रयी’ के आदिम ग्रन्थ हैं तथा अन्य दोनों गीता और ब्रह्मसूत्र के आश्रयभूत है। उपनिषदों को आध्यात्मिक मानसरोवर कहा जाता हैजिससे विनिःसृत ज्ञान की सरिताऐं इस पुण्य भूमि में मानव मात्र के अभ्युदय (भौतिक उन्नति) एवं निःश्रेयस (आध्यात्मिक कल्याण) के लिए प्रवाहमान हैं।

उपनिषद् शब्द का अर्थ

उपनिषद् शब्द ब्रह्म विद्या या आत्म विद्या का प्रकाशक है उपनिषद् शब्द तीन शब्द उपनिसद् के संयोजन से बना है- उप- निकटनिः - श्रद्धासद् - बैठना। अतः उपनिषद् शब्द का अर्थ हुआ शिष्य का गुरु के निकट उपदेश प्राप्ति के लिए श्रद्धा पूर्वक परमतत्व का गूढ़ उपदेश सुनने के लिए बैठनाजिससे शिष्य की अविद्या का नाश होता हैउसे ब्रह्म की प्राप्ति होती है तथा उसके कर्म बंधन एवं दुःखादि का शिथलीकरण होकर क्षय हो जाता है। यह विद्या गुरु द्वारा अधिकारी शिष्य को एंकात में दी जाती है।

Upanishad Kya Hain

उपनिषदों का सम्पूर्ण परिचय विडियो देखें

इसी प्रकार दूसरे अर्थ में ‘उप’, ‘नि’ इन दो उपसर्गों के साथ ‘सद्’ धातु से ‘क्विप्’ प्रत्यय के प्रयोग से उपनिषद् शब्द बना है। ‘सद्’ धातु के तीन अर्थ होते हैं-

1. विशरण (विनाश)

2. गति (ज्ञान और प्राप्ति

3. अवसादन (शिथिल करना)

इस प्रकार जो पापताप का नाश करेसच्चा ज्ञान प्रदान करेआत्मा की प्राप्ति कराये और अज्ञान-अविद्या को शिथिल अर्थात् नाश करे तथा ब्रह्म की प्राप्ति कराए वह उपनिषद् है।

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मुख्य उपनिषदों की संख्या

उपनिषदों की संख्या अनेक है वरन् मुक्तिकोपनिषद् के अनुसार उपनिषदों की संख्या 108 मानी गयी हैजिसमें से 10 उपनिषद् मुख्य माने जाते हैं। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने इन 10 उपनिषदों पर अपना भाष्य दिया है, इसलिए ये मुख्य उपनिषद् माने जाते हैं मुख्य दस उपनिषदों के नाम निम्नांकित हैं- 

1. ईशावास्योपनिषद्

2. केनोपनिषद्

3. कठोपनिषद् 

4. प्रश्नोपनिषद् 

5. मुण्डकोपनिषद् 

6. मांडूक्योपनिषद् 

7. ऐतरेयोपनिषद् 

8. तैत्तिरीयोपनिषद्

9. छान्दोग्योपनिषद्

10. बृहदारण्यकोपनिषद्

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