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उपनिषदों में योग का स्वरूप | Upanishadon Mein Yog Ka Swaroop | Yoga in Upanishads | उपनिषदों में योग

उपनिषदों में योग का स्वरूप

भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक ग्रंथों में उपनिषदों का स्थान बहुत ही अग्रणी है। वैदिक शिक्षा का विस्तृत विवेचन उपनिषदों में किया गया है। इनमें उच्च कोटि का ज्ञान भरा है। उपनिषदों को वेदान्त के नाम से भी जाना जाता है। उपनिषद् शब्द का अर्थ है- निकट श्रध्दा पूर्वक बैठना। उपनिषद् क्या हैं एवं मुख्य उपनिषदों की कुल संख्या के विषय में हम पूर्व में ही देख चुके हैं। योग विद्या का उपनिषदों में बहुत अधिक वर्णन किया गया है। मुक्तिकोपनिषद् के अनुसार उपनिषदों की संख्या 108 के लगभग मानी गयी है। इसमें कहीं-कहीं योग का वर्णन विशेष रूप से किया गया है। कुछ ऐसे उपनिषद भी हैं जिनमें केवल योग विषय पर ही चर्चा है। जिनमें से कुछ मुख्य उपनिषद् निम्नलिखित इस प्रकार हैं-

1. अद्वयतारकोपनिषद्                        

2. अमृतबिन्दु उपनिषद्

3. अमृतानोपनिषद्                            

4. मुक्ति उपनिषद्

5. तेजोबिन्दुपनिषद्                            

6. त्रिशिखब्राह्मणोपनिषद्

7. दर्शनोपनिषद्                                

8. ध्यानबिन्दुपनिषद्

9. नादबिन्दुपनिषद्                            

10. पाशुपतब्रह्मणोपनिषद्

11. ब्रह्म विद्योपनिषद्

12. मण्डलब्रह्मणोपनिषद्

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13. महावाक्योपनिषद्                        

14. योगकुण्डल्युपनिषद्

15. योगचूड़ामण्युपनिषद्                    

16. शाण्डिल्युपनिषद्

17. हंसोपनिषद्                                 

18. योगतत्वोपनिषद्

19. योगशिखोपनिषद्                         

20. योगराजोपनिषद्

21. वराहोपनिषद्। इत्यादि

इन सभी उपनिषदों में चित्त, चक्र, नाड़ी, कुण्डलिनी इन्द्रियों आदि यम-नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि, मंत्रयोग, लययोग, हठयोग, राजयोग, ब्रह्मध्यान योग, प्रणवोपासना, ज्ञानयोग, तथा चित्त की अवस्थाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है।

उपनिषदों में योग की अनेक परिभाषाऐं दी गई हैं। इसी प्रकार से योग शिखोपनिषद् में योग की परिभाषा देते हुए कहा गया है-

योऽपान प्राणर्योऐक्यं रजसो रेतसो तथा।
सूर्य चन्द्रमसोर्योगाद् जीवात्म परमात्मनो।।
एवं तु द्वन्द्व जालस्य संयोगो योग उच्यते।।
योग शिखोपनिषद्

Upanishad-in-Hindi

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अर्थात् प्राण और अपान की एकता सत-रजरूपी कुण्डलिनी की शक्ति और स्वरेत रूपी आत्मत्व का मिलनसूर्यस्वर व चन्द्रस्वर का मिलन एवं जीवात्मा व परमात्मा का मिलन ही योग है। अमृतानोपनिषद् में योग के अंगों का वर्णन करते हुए कहा गया है-

प्रत्याहारस्तथा ध्यानं प्राणायामोऽथ धारणा।
तर्कश्चैव समाधिश्च षडंगोयोग उच्यते।।
अमृतानोपनिषद्

अर्थात् आसन, प्रत्याहारधारणाध्यानप्राणायाम तक और समाधि यह षडंग योग कहलाता है। अन्य एक उपनिषद् में आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि योग के छः अंग बताये गये हैं। इसके अतिरिक्त अष्टांग योग का भी उपनिषदों में विस्तृत वर्णन किया गया है योगशिखोपनिषद् में योग की विभिन्न पद्धतियों का वर्णन करते हुए कहा गया है-

मन्त्रो लयो हठो राजयोगान्ता भूमिकाः क्रमात्।
एक एव चतुर्धाऽयं महायोगोऽभिधीयते।।

                                                      योगशिखोपनिषद्

अर्थात् मंत्रयोग, लययोग, हठयोग और राजयोग ये चारों जो यथाक्रम चार भूमिकाएँ हैं। चारों मिलकर यह एक ही चतुर्विध योग है। जिसे महायोग कहते हैं। उपनिषदों में मोक्षप्राप्ति के लिये ज्ञान के साथ-साथ योग को भी आवश्यक माना गया है। योग तत्वोपनिषद् में कहा गया है-

योग हीनं कथं ज्ञानं मोक्षदं भवति ध्रुवम्।
योगोऽपि ज्ञान हीनस्तुु न भवेन्मोक्षकर्मणि।।
                                                          योगतत्वोपनिद्

अर्थात् योग के बिना ज्ञान ध्रुव मोक्ष का देने वाला भला कैसे हो सकता है उसी प्रकार ज्ञानहीन योग भी मोक्षकर्म में असमर्थ है। इसलिये मोक्ष की प्राप्ति के लिए ज्ञान और योग दोनों का साथ-साथ होना आवश्यक है। क्योंकि योग के बिना शुद्ध ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो पाती है और ज्ञान के बिना योग साधकों का भी कोई महत्व नहीं है।

योग का उपनिषदों में मनुष्य जीवन हेतु, बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। योग के महत्व को दर्शाते हुये कठोपनिषद् में कहा गया है-

तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरामिद्रियधारणम्।
अप्रमतस्तदा भवति योगो हि प्रभवाप्ययौ।।

                                                            कठोपनिषद्

अर्थात् इन्द्रियों की स्थिर धारणा अर्थात् उनके संयम को भी योग कहते हैं। इसके साधन को करने वाला साधक प्रमाद रहित हो जाता है। और शुभ संस्कारों का उदय होने लगता है।

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उपनिषदों में इनके साथ-साथ शरीरस्थनाड़ियाँवायु प्राण और मन सभी का वर्णन प्राप्त होता है। उपनिषदों में आत्मा का आवरण के रूप में पंचकोशों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया गया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि योग के सभी अंगों का उपनिषदों में विस्तृत वर्णन किया गया है। इस प्रकार उपनिषदों में प्राप्त इन परिभाषाओं से ज्ञात होता है की मानव जीवन में उपनिषदों की उपयोगिता क्यों है और किस प्रकार से उपनिषदों में योग के विषय में चर्चा की गयी है।

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