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ध्यानबिन्दु उपनिषद का परिचय | Dhyanabindu Upanishad in Hindi | ध्यानबिन्दुपनिषद

ध्यानबिन्दुपनिषद् का परिचय

ध्यानबिन्दुपनिषद् कृष्णयजुर्वेदीय परम्परा से सम्बंधित उपनिषद् है। इस उपनिषद् के नाम से ही स्पष्ट है कि इस उपनिषद् का केन्द्रीय भाव 'ध्यान' है। केन्द्रीय भाव 'ध्यान' होने के कारण इस उपनिषद् का नाम ध्यानबिन्दुपनिषद् पड़ा है। इस उपनिषद् का शुभारम्भ 'ब्रह्म ध्यानयोग' से किया गया है। उपनिषद क्या हैं एवं मुख्य उपनिषदों की संख्या इस विषय में हम पूर्व में ही जान चुके हैं।

ध्यानबिन्दुपनिषद् के प्रारंभ में ब्रह्म ध्यानयोग का वर्णन करने के पश्चात् क्रमशः ब्रह्म की सूक्ष्मता एवं सर्वव्यापकता, प्रणव अर्थात् ओंकार का स्वरूप, प्रणव के ध्यान की विधि, प्राणायाम के साथ प्रणव का ध्यान, सविशेष ब्रह्म का ध्यान, हृदय में ध्यान एवं उसका प्रतिफल, षडंगयोग, आसन चतुष्टय अर्थात् सिद्धासन, भद्रासन, सिंहासन और पद्मासन व मूलाधार आदि चार चक्रों का वर्णन किया गया है।

Dhyanabindu Upanishad in Hindi

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इसके पश्चात् उपनिषद् में दस प्राण, जीव का प्राण-अपान का वशवर्ती होना, योग के समय प्राण और अपान की एकता, अजपा, हंस विद्या, कुण्डलिनी से मोक्ष प्राप्ति, ब्रह्मचर्यादि से कुण्डलिनी जागरण, तीनों बन्ध, खेचरी मुद्रा, खेचरी से वज्रोली सिद्धि, महामुद्रा, हृदय में आत्मानुभव तथा नादानुसन्धान द्वारा आत्मदर्शन आदि विषय वर्णित हैं। साधना द्वारा सिद्धि प्राप्त करने के इच्छुक साधकों के लिए इस उपनिषद् में बड़ा ही व्यावहारिक मार्गदर्शन उपलब्ध है। ध्यानबिन्दु उपनिषद का परिचय इस प्रकार से प्राप्त होता है।

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