देवऋण क्या है
देवऋण जैसे की नाम से ही स्पस्ट हो रहा है की देवताओं के प्रति ऋण। देवऋण जानने से पूर्व त्रिऋण क्या है इस विषय में भी जानना जरूरी है, जिसके विषय में हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं। जैसा कि हमने पूर्व में त्रिऋण में पढ़ा की वैदिक आर्यों ने प्राकृतिक शक्तियों को देव कहा था क्योंकि वह उन्हें तरह-तरह से जीवन दान देती थी। इन देवताओं पूजा करना अर्थात् इनके ऋण से उऋण होने का नाम ही देवऋण है।
देवऋण का अर्थ
देवऋण से मुक्त होने के लिए देवों के प्रति स्तुति में वैदिक ऋषियों ने अनेकानेक ऋचाएँ रची हैं। किन्तु केवल शाब्दिक स्तुति से इन देवों के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता था, न ही इनसे प्रकृति में सन्तुलन कायम किया जा सकता था। अतः वैदिक ऋषियों ने अनेकानेक प्रकार के यज्ञों की विधियाँ बताई ताकि इन्हें यज्ञ द्वारा हविष्य प्रदान किया जा सके। इन यज्ञों को नियमित रूप से करने पर धार्मिक परम्परा की भी रक्षा होती थी। यज्ञ गृहस्थाश्रम तथा वानप्रस्थाश्रम दोनों में किये जा सकते थे। इस प्रकार यह देवऋण है।
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