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शिक्षा का अर्थ | शिक्षा की परिभाषा | Meaning Of Education | शिक्षा का अर्थ और परिभाषा

शिक्षा क्या है

प्राचीन परम्परा से लेकर आज के आधुनिक और पाश्चात्य शिक्षण परम्परा तक सम्पूर्ण जगत् शिक्षा की ओर सदा ही उन्मुख रहा है। शिक्षक, विद्यार्थी, अभिभावक, समाज सुधारक, गणनायक, विद्यालय संचालक, व्यवस्थापक, राजनेता, मन्त्री सभी शिक्षा को मानव के सर्वांगीण विकास में अत्यन्त उपयोगी कारक के रूप में स्वीकार करते हैं। आज यहाँ हम यह जानेगें की शिक्षा क्या है, शिक्षा का अर्थ क्या है और शिक्षा की परिभाषा क्या है अर्थात् भिन्न-भिन्न विद्वानों के मत में शिक्षा का तात्पर्य क्या है

शिक्षा का अर्थ

व्युत्पति की दृष्टि से 'शिक्षा' शक् धातु से निष्पन्न हुआ शब्द है; जिसका मूल अर्थ है कर सकने की इच्छा। अर्थात् समर्थ होने का संकल्प। यह ऐसा संकल्प है, जो यदि दोहराया नहीं जाता, तो निष्प्रभावी हो जाता है। इसलिए 'शिक्षा' निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा का फल यद्यपि सम्पूर्ण समाज को मिलता है? तथापि मूलतः शिक्षा उस व्यक्ति के लिए होती है, जो अपने विस्तार की प्रक्रिया में सतत संलग्न है।

शिक्षा का अर्थ क्या है

शिक्षा की परिभाषा

अनेकानेक विद्वानों के अनुसार शिक्षा की भिन्न-भिन्न रूपों में भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी गयी हैं, जो आगे निम्नलिखित हैं-

1. सुकरात के अनुसार- सुकरात के शब्दों में शिक्षा का अर्थ है प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में अदृश्य रूप में विद्यमान संसार के सर्वमान्य विचारों को व्यवहार में लाना ही शिक्षा का अर्थ है

2. डॉ राधाकृष्णन के अनुसार- डॉ राधाकृष्णन के शब्दों में शिक्षा व्यक्ति और समाज के सर्वतोन्मुखी विकास की एक सशक्त प्रक्रिया है

3. डॉ. शालिग्राम त्रिपाठी के अनुसार- डॉ. शालिग्राम त्रिपाठी के शब्दों में व्यापक अर्थों में शिक्षा सम्पूर्ण जीवन तक चलने वाली एक प्रक्रिया है। मानव का सम्पूर्ण जीवन ही शिक्षणकाल है। जन्म से विकास का क्रम प्रारम्भ होता है, जो घर समाज एवं विद्यालय के सापेक्ष सतत चलता रहता है। जन्म के समय बालक असामाजिक एवं असहाय होता है। उसकी न कोई संस्कृति होती है, न कोई आदत, किन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है, वह सामाजिक प्राणी बनता जाता है।

बालक को सामाजिक एवं सांस्कृतिक बनाने में शिक्षा की महती भूमिका होती है, क्योंकि शिक्षा व्यक्ति की नैसर्गिक प्रवृत्तियों का शोधन और मार्गान्तीकरण करके उसे समाज का एक सक्रिय सदस्य बनाती है, जिससे वह अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह कुशलतापूर्वक कर सके। संसार में ऐसे बहुत कम व्यक्ति मिलेंगे, जिन्हें शिक्षा में किसी प्रकार की रुचि न हो, क्योंकि शिक्षा के बिना मानव-जीवन भारस्वरूप हो जाता है, प्रत्येक व्यक्ति एक शिशु के रूप में कुछ पाशविक प्रवृत्तियाँ लेकर असहाय तथा दान-हीन अवस्था में इस व्यापक विश्व में प्रवत्तियों का शोधन तथा मार्गान्तीकरण करते हए, अपने को एक मानव व सामाजिक प्राणी बनाने का सौभाग्य प्राप्त करता है।

4. लॉक के अनुसार- लॉक के शब्दों में- "Plants are developed by cultivation and men by education.” अर्थात् पौधों का विकास कृषि द्वारा एवं मनुष्य का विकास शिक्षा द्वारा होता है।

5. जॉन ड्यूवी के अनुसार- जॉन ड्यूवी ने भी इसी तथ्य पर जोर देते हुए लिखा है- "What food is for physical development, education is for social growth." अर्थात् जिस प्रकार शारीरिक विकास के लिए भोजन का अधिक महत्व है, ठीक उसी प्रकार सामाजिक विकास के लिए शिक्षा का महत्व है। अभिरुचि या अभिवृत्ति का तात्पर्य किसी कार्य विशेष की ओर झुकाव या लगाव से है।

इन्हें भी पढ़ें -

किसी कार्य में महारत हासिल करने के लिए व्यक्ति में विद्यमान योग्यता या कुशलता ही पर्याप्त नहीं होती है, अपितु उसकी ओर झुकाव भी होना चाहिए, अर्थात् मनसा, वाचा, कर्मणा उसकी सिद्धि हेतु अनवरत प्रयास करना चाहिए। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो लक्ष्य विशेष को प्राप्त करना चाहते हैं, परन्तु प्रयास नहीं करते या करते भी हैं तो थोडी भी परेशानी आई कि बीच में ही छोड़कर दूर खड़े हो जाते हैं। ऐसा प्रयास नहीं होना चाहिए, अपितु जब तक सफलता साकार रूप में सामने न आ जाए तब तक दृढ़प्रतिज्ञभाव से प्रयास जारी रखना चाहिए यदि प्रयास के बाद भी सफलता नहीं मिलती है, तो सूक्ष्मावलोकन करना चाहिए कि हमारे प्रयास में कहाँ और क्या कमी या दोष है।

प्रयासों की यह विविधता मुख्य रूप से व्यक्ति की अभिरुचि से प्रभावित होती है, क्योंकि जिस कार्य के प्रति व्यक्ति की उत्कट अभिरुचि होती है, प्राय: वह उसके प्रति लक्ष्यप्राप्ति हेतु मानसिक रूप से जुड़ जाता है, और मन चूँकि सभी इन्द्रियों का नियामक है, अत: उस लक्ष्य के प्रति मन की एकाग्रता के साथ-साथ सम्पूर्ण इन्द्रियाँ भी विधेयात्मक प्रवृत्तिवाली हो जाती हैं, और व्यक्ति शीघ्र ही अपनी मंजिल को प्राप्त करके शीतल-मंदसुगन्ध-समीर का सुखद आनन्द लेने लगता है।

कभी-कभी देखा जाता है कि ऐसे भी व्यक्ति जो अपेक्षाकृत अधिक योग्य होते है। परंतु उस दिशा में अभिरुचि न रखने के कारण सफल नहीं हो पाते हैं, जबकि कभी-कभी मन्दबुद्धि का व्यक्ति भी उस दिशा-विशेष में अपनी अभिरुचि से नियन्त्रित प्रयासों के परिणामस्वरूप सफलता को हासिल कर लेता है।

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