अर्ध मत्स्येन्द्रासन का नामकरण
अर्ध मत्स्येन्द्रासन शरीर संवर्धनात्मक आसनों की श्रेणी के अंतर्गत आने
वाला एक प्रमुख आसन है। कहा जाता है कि योगी मत्स्येन्द्रनाथ जी इसी आसन में बैठकर ध्यान, साधना किया करते थे, इसलिए उन्हीं के नाम पर इस आसन का नाम अर्ध मत्स्येन्द्रासन पड़ा है। अर्ध मत्स्येन्द्रासन का वर्णन महर्षि घेरंड ने अपने ग्रन्थ घेरंड संहिता में 32 आसनों के अंतर्गत भी किया है। उदर को
पीठ की ओर खींचकर पीठ को सीधा रखते हुए बायें पाँव की एड़ी को यत्नपूर्वक मोड़ कर
दायीं जाँघ पर रखते हैं और उस पर दायीं केहुनी रखते हुए ठुड्डी को दायें हाथ पर रख
कर दृष्टि को भौंहों के मध्य भाग में स्थिर कर लेते हैं। शरीर की इस स्थति को अर्ध मत्स्येन्द्रासन कहा जाता है।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन की विधि
अर्ध मत्स्येन्द्रासन के अभ्यास के लिए सर्वप्रथम अपने पैरों को पहले सामने फैला लेते हैं और दाहिने पैर को मोड़कर जमीन पर बायें घुटने की बगल में बाहर की ओर रखते हैं। दायें पैर की अँगुलियाँ सामने की ओर रहेंगी। बायें पैर को मोड़कर बायें एड़ी को दाहिने नितम्ब के पास रखते हैं। इसमें एक पैर उठा हुआ रहता है। अब जो पैर उठा हुआ है, उसकी विपरीत भुजा को छाती और घुटने के बीच से ले जाते हैं, इसके बाद केहुनी से घुटने को शरीर की तरफ दबाते हुए हाथ को सीधा करके पैर या टखने को इस प्रकार पकड़ते हैं कि दायाँ घुटना काँख के पास रहे।
मत्स्येन्द्रासन की विधि लाभ एवं सावधानियां वीडियो देखें
दाहिनी भुजा को सामने की ओर फैलाकर दृष्टि को अँगुलियों के अग्रभाग पर केन्द्रित करते हैं। दायीं भुजा, धड़ एवं सिर को एक साथ घुमाते हुए धीरे से दायीं ओर मुड़ते हैं। सिर झुका हुआ न रहे। धड़ को पीठ की मांसपेशियों का उपयोग किये बिना यथासम्भव मोड़ने के लिए बायीं भुजा से दायें घुटने पर दबाव डालते हुए उसका उपयोग एक उत्तोलक की भाँति करते हैं। दृष्टि को बायें हाथ का अनुसरण करते हुए घुमायें और कन्धों के ऊपर से पीछे की ओर देखें। दायीं केहुनी को मोड़कर भुजा को कमर के पृष्ठ भाग के चारों ओर लपेट लें। दाहिने हाथ के पीछे का भाग दायीं कमर के चारों ओर लिपट जाए। अँगुलियाँ ऊपर की ओर रहें। हाथ को यथासम्भव ऊपर ले जायें। हाथ की यह स्थिति मेरुदण्ड को सीधा रखने में सहायक होती हैं। तत्पश्चात् पैरों को बदल कर यही क्रिया विपरीत दिशा में करते हैं।
अर्ध मत्स्येन्द्रासन के लाभ
अर्ध मत्स्येन्द्रासन के अभ्यास से आँतों, आमाशय एवं पाचन संस्थान की मालिश होती है, तथा पाचन संस्थान सम्बन्धी रोगों का निवारण होता है। अर्ध मत्स्येन्द्रासन के अन्य लाभ -
- मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास यकृत और मूत्राशय को सक्रिय बनाने में अत्यंत सहयोगी एवं लाभकारी आसन है।
- यह आसन अधिवृक्क ग्रन्थि, उपवृक्क ग्रन्थि एवं पित्त के स्राव का नियमन करता है।
- अर्ध मत्स्येन्द्रासन मधुमेह तथा कब्ज के उपचार के लिए एक रामबाण आसन है।
- साइटिका या स्लिप डिस्क से पीड़ित व्यक्तियों को इस आसन से बहुत लाभ से हो सकता है, किन्तु उन्हें यह अभ्यास बहुत सावधानी से करना चाहिए।
इन्हें भी पढ़ें -
अर्ध मत्स्येन्द्रासन की सावधानियाँ
अर्ध मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास गर्भवती महिलाओं को दो तीन महीने के गर्भ के बाद इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए। पेप्टिक अल्सर, हर्निया या हाइपर थायराइड से ग्रसित व्यक्ति को इसका अभ्यास योग्य शिक्षक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। जिन्हें हृदय रोग है, उन्हें यह अभ्यास नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे हृदय से निकलने वाली धमनियों और कशेरुकाओं पर अधिक जोर पड़ता है। अर्ध मत्स्येन्द्रासन का अभ्यास आगे एवं पीछे झुकने वाले आसनों के अभ्यास के बाद करना चाहिए।
अगर आप इच्छुक हैं तो योग विषयक किसी भी वीडियो को देखने के लिए यूट्यूब चैनल पर जाएं। साथ ही योग के किसी भी एग्जाम की तैयारी के लिए योग के बुक्स एवं टूल्स स्टोर पर जाएं।
0 टिप्पणियाँ