वर्तमान युग में योग का महत्व
भारतीय
धर्म एवं दर्शन में योग का अत्यधिक महत्व है। आध्यात्मिक
उन्नतियां शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए योग की आवश्यकता व महत्व को प्रायः
सभी दर्शनों एवं भारतीय धार्मिक सम्प्रदायों ने एकमत व मुक्तकंठ से स्वीकार किया
है।
आज आधुनिक मनुष्य को योग की ज्यादा आवश्यकता है, जबकि मन और शरीर अत्यधिक तनाव, वायु प्रदूषण तथा भागमभाग के जीवन से रोगग्रस्त हो चला है। अंतरिक्ष में योग का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि मनुष्यजाति को अब और आगे प्रगति करना है तो योग सीखना ही होगा। अंतरिक्ष में जाना है, नए ग्रहों की खोज करना है। शरीर और मन को स्वस्थ और संतुलित रखते हुए अंतरिक्ष में लम्बा समय बिताना है तो विज्ञान को योग की महत्ता और महत्व को समझना होगा।
भविष्य का धर्म दरअसल योग भविष्य का धर्म और विज्ञान है इसीलिए भविष्य में योग का महत्व और अधिक बढ़ेगा। यौगिक क्रियाओं से वह सब कुछ बदला जा सकता है जो हमें प्रकृति ने दिया है और वह सब कुछ पाया जा सकता है जो हमें प्रकृति ने नहीं दिया है। अंततः मानव अपने जीवन की श्रेष्ठता के चरम पर अब योग के ही माध्यम से आगे बढ़ सकता है, इसलिए योग के महत्व को समझना होगा। योग व्यायाम नहीं, योग है विज्ञान का चौथा आयाम और उससे भी आगे।
योग का शारीरिक महत्व
योगासनों के माध्यम से शारीरिक शक्तियों का विकास किया जा सकता है। शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाने, उसके अंग- प्रत्यंगो की कार्यक्षमता करने तथा उसे निरोग बनाये रखकर ओजस्वी एवं कांतिमय बनाने में योग साधना का अधिक महत्व है। शरीर में विभिन्न द्रव्यों का निर्माण करने वाली ग्रंथियों को ठीक प्रकार नियंत्रित कर उन्हें पर्याप्त रूप से सजग एवं क्रियाशील बनाये रखने में योग के द्वारा पूर्ण सहायता प्राप्त होती है। योग का महत्व श्वेताश्वतर उपनिषद में इस प्रकार वर्णित किया गया है-
प्राप्तस्य योगाग्निमयं शरीरम्।। (2/12)
अर्थात् योगाग्निमय शरीर को प्राप्त कर लेने वाला योगी के शरीर में न तो रोग उत्पन्न होते हैं, न बुढ़ापा आता है और न ही उसकी मृत्यु होती है। योग साधना के द्वारा शरीर की रोगनाशक और कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता आ जाती है, अर्थात् वृद्धि हो जाती है। व्यक्ति को रोगों से मुक्त करना अथवा उनसे बचे रहने का मार्ग दर्शन करना योग के उद्देश्य है।
योग का मानसिक महत्व
आस्थाएँ, मान्यताएँ, उद्देश्य, और लक्ष्य सही हो तो न केवल जीवन के सामर्थ्य का सही नियोजन संभव हैं बल्कि मानसिक समस्याओं के कारण जो आक्रामकता, तनाव, चिंता एवं द्वंद पनपते है। इस वजह है प्राण क्षय होता है।
योग के द्वारा शारीरिक ही नहीं बल्कि उत्तम मानसिक स्वास्थ्य को भी प्राप्त करने में पूरी-पूरी सहायता मिलती है। मानसिक शक्तियों के पोषण और विकास के लिए उपर्युक्त चेतना और शक्ति भी प्राप्त होती है। योग के विषय में रुचि जागरण का कारण आधुनिक समाज में मानसिक तनावों की वृद्धि एवं रोगों की दर में वृद्धि होना ही है।
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योग की विविध हठयौगिक क्रियाएँ आसन, प्राणायाम, आदि शरीर के लिए तो स्पष्ट रूप से हितकर है ही इनका मानसिक स्वास्थ्य पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। अनुसंधानों से स्पष्ट हो चुका है कि योग के अभ्यास से मानसिक तनाव कम होता है तथा मनुष्य में मनोदैहिक सामंजस्य की वृद्धि होती है।
मन और भावनाओं पर योग का महत्व
जीवन में सकारात्मक विचारों का होना बहुत आवश्यक है। निराशात्मक विचार असफलता की ओर ले जाता है। योग से मन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। योग से आत्मिक बल प्राप्त होता है और मन से चिंता, विरोधाभास एवं निराशा की भावना दूर हो जाती है। मन को आत्मिक शांति एवं आराम मिलता है जिससे मन में प्रसन्नता एवं उत्साह का संचार होता है, इसका सीधा असर व्यक्तित्व एवं सेहत पर होता है।
मानसिक क्षमताओं के विकास में योग का महत्व
स्मरण शक्ति एवं बौद्धिक क्षमता जीवन में प्रगति के लिए प्रमुख साधन माने जाते हैं। योग से मानसिक क्षमताओं का विकास होता है और स्मरण शक्ति पर भी गुणात्मक प्रभाव होता है। योग मुद्रा और ध्यान मन को एकाग्र करने में सहायक होता है। एकाग्र मन से स्मरण शक्ति का विकास होता है। प्रतियोगिता परीक्षाओं में तार्किक क्षमताओं पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं। योग तर्क शक्ति का भी विकास करता है एवं कौशल को बढ़ता है। योग की क्रियाओं द्वारा तार्किक शक्ति एवं कार्य कुशलता में गुणात्मक प्रभाव होने से आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
शरीर के लचीलापन में योग का महत्व
योग से शरीर मजबूत और लचीला होता है। योग मांसपेशियों को सुगठित और शरीर को संतुलित रखता है, सुगठित और संतुलित और लोचदार शरीर होने से कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है। कुछ योग मुद्राओं से शरीर की हड्डियां भी पुष्ट और मजबूत होती हैं। यह अस्थि सम्बन्धी रोग की संभावनाओं को भी कम करता है।
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1 टिप्पणियाँ
बहोत खूब! धन्यवाद.
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