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मानव जीवन में योग का महत्व | Jivan Mein Yog Ka Mahatva | योग का महत्व

योग क्या है, योग का अर्थ

योग का महत्व क्या है एवं मानव जीवन में योग की उपादेयता क्या है यह जानने से पूर्व यह जानना अत्यंत आवश्यक है की आखिर योग क्या है और योग का इतिहास क्या है? जैसे की अन्य-अन्य ग्रंथों एवं अनेकानेक योगियों ने योग की अन्य-अन्य परिभाषाएं दी हैं, जैसे की- आत्मा का परमात्मा से मिलन, चित्त की वृत्तियों का निरोध आदि। आत्मा का परमात्मा से मिलन व चित्त की वृत्तियों का निरोध क्या ये सब किसी विधा द्वारा सम्भव है? यदि इस दिशा में खोज की जाए तो हमारे सामने यह तथ्य प्रकट होता है कि योग विद्या ही एक ऐसा मार्ग है, जिसे जीवन में उतार कर मानव इन उपलब्धियों को प्राप्त कर सकता है। अतः अपने इन विशिष्ट गुणों के कारण आध्यात्मिक क्षेत्र, वैज्ञानिक क्षेत्र व अन्य क्षेत्रों में योग विद्या का अपना विशिष्ट महत्व है।

मानव जीवन में योग का महत्व

योग का महत्व यदि अध्यात्म विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो विज्ञान के अन्तर्गत मस्तिष्क के दोनों भागों के बीच समन्वय स्थापित करने वाली नाना प्रकार की योग साधनाएं हैं। इनमें मन्त्र, जप, आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान, नाड़ी शोधन प्रक्रिया आदि वैज्ञानिकों द्वारा मान्यता प्राप्त व विशेष लाभकारी सिद्ध हुए हैं। योगाभ्यास के अन्तर्गत इसे क्रियायोग की संज्ञा दी जाती है। वैज्ञानिकों ने क्रियायोग के प्रयोग से यह सिद्ध कर दिखाया है कि इसके सतत् अभ्यास से दोनों मस्तिष्कों का समान विकास होता है। जिससे मानसिक सन्तुलन बढ़ता है, व असामान्य मन:स्थिति नियन्त्रित होती है।

Manav-Jivan-Mein-Yog-Ka-Mahatva

धारणा, ध्यान व क्रियायोग के सतत अभ्यास से एक समय ऐसा भी आता है जब कि मनुष्य की अन्तःप्रज्ञा जागृत होती है और बिना किसी प्रकार के अध्ययन के ही नाना प्रकार के गूढ रहस्यों का विवेचन सम्भव होता है तथा प्रकृति की अनेक रहस्यमयी जानकारियाँ उसके करतलगत हो जाती हैं। वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधानों में पाया कि दाएं मस्तिष्क का सम्बन्ध इड़ा नाड़ी से व बाएं का सम्बन्ध पिंगला नाड़ी से है। मस्तिष्क विकास एवं कौशल अभ्यास के लिए योग प्रशिक्षण की अनेक व्यवस्थाएं मौजूद हैं। कुसंस्कारिता से छुटकारा पाने और सुसंस्कारी व्यक्तित्व निर्मित करने के लिए योग साधना का जितना महत्व है उतना और किसी उपाय, उपचार का नहीं।

उदाहरण के तौर पर यज्ञ प्रक्रिया शारीरिक, मनोशारीरिक, मानसिक, दुर्बलता, रूग्णता के निवारण में अत्यधिक सहायक सिद्ध होती है? इसके अतिरिक्त उस माध्यम से वातावरण का परिशोधन एवं प्राण पर्जन्यों का अभिवर्षण भी सम्भव होता है। योग के माध्यम से विभिन्न शारीरिक, मनोशारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक पीड़ा पर काफी हद तक नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। शारीरिक, मानसिक तनावों को साधारण योगाभ्यास से दूर किया जा सकता है। आन्तरिक वेदनाओं को कम करने में प्राणायाम, शिथलीकरण, ध्यान आदि की प्रक्रियाएँ बहुत कारगर सिद्ध होती है।

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योग की प्रक्रिया नर्वस सिस्टम पर नियंत्रण पाने की मस्तिष्क की शिराओं एवं तन्तुओं को सुव्यवस्थित करने का ही रहस्य सन्निहित है। योग का ध्यान प्रक्रिया आन्तरिक ऊर्जा की अभिवृद्धि करने एवं चेतना के विकास के लिए बहुत उपयोगी है। योग के अभ्यास से ज्यादा विश्वास उत्पन्न होकर जीवनी शक्ति का विकास होता जाता है जिसके फलस्वरूप निराशा, दु:ख और अन्तर्वेदना पर नियंत्रण पा सकना शक्य हो जाता है।

योग साधना बालक वृद्ध, नर नारी सभी के लिए सरल और सम्भव है। हर स्थिति के व्यक्ति के लिए उसके स्तर के अनुरूप साधानाओं का विधान विद्यमान है। शरीर और मस्तिष्क को जागृत करने की सामर्थ्य योग साधना में है। योग साधना में प्रवृत्त हुआ मनुष्य अपनी आत्मा की असीमता को जब परमात्मा के असीमता के साथ मिला देता है तो अनेक दृष्टियों से असामान्य बन जाता है। वह अपने शरीर में कायाकल्प जैसा परिवर्तन कर सकता है। अति दीर्घजीवी हो सकता है - अदृश्य जगत का ज्ञान प्राप्त करके उसमें चल रही हलचलों को मन्द शिथिल एवं परिवर्तित कर रसकता है। इन सबसे ऊपर योग मार्ग द्वारा समाधि को प्राप्त हुआ व्यक्ति त्रिकालदर्शी और विश्व की जड़चेतन सत्ता को प्रभावित करने में समर्थ बन जाता है।

योग का महत्व जितना व्यक्तिगत रूप से पड़ता है उतना ही सामाजिक स्तर पर दृष्टिगत होता है। समाज व्यक्तियों से मिलकर बना है। समाज में रहने वाले जब यम, नियमों का पालन करते हैं तो उनके अनुरूप सुन्दर, संयमी समाज का निर्माण प्रारंभ हो जाता है जैसा कि ऊपर भी कहा गया है कि योग साधना से प्रवृत्त हुआ व्यक्ति अनेक उपलब्धियों को प्राप्त होता है। वह चरित्रवान, सन्मार्ग पर दुस्साहसपूर्वक चलने वाला, लोक मंगल के लिए आत्म समर्पणकर्ता होता है। जब ऐसा व्यक्ति एक समाज का नेतृत्व करता है या उसके अन्तर्गत रहता है तो वह अपने गुणों के द्वारा अन्य लोगों को प्रकाशित करता है और वह व्यक्तियों का समूह जब एक समाज के रूप में परिवर्तित होता है तो वह सम्पूर्ण जगत को एक दिशा प्रवाह प्रदान करता है।

इस प्रकार हम देखते हैं की योग के द्वारा व्यक्ति का समग्र विकास होता है और जीवन के विविध क्षेत्रों में योग का महत्वपूर्ण स्थान है व्यक्तिगत जीवन में नही योग का महत्व अलौकिक उपलब्धियों के रूप में देखे जा सकते हैं।

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