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पितृयज्ञ किसे कहते हैं | Pitra Yagya Kya Hai | पितृयज्ञ का क्या अर्थ है | पितृयज्ञ क्या है

यज्ञ किसे कहते हैं

यज्ञ का अर्थ है- त्याग, समर्पण एवं शुभ कर्म। प्रकृति का मूल स्वभाव यज्ञ परंपरा के अनुरूप ही है। वैदिक युग में धर्म की सबसे प्रमुख अभिव्यक्ति यज्ञ ही थे। उस युग में देवताओं की मूर्तियाँ नहीं थी जिससे मनुष्य बिना किसी माध्यम के देवताओं से सीधे सम्पर्क रखते थे। ऐसी स्थिति में उन्होंने ईश्वर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए, उसके प्रति अपने हृदय के प्रेम को अभिव्यक्त करने के लिए प्रार्थना और समर्पण करना सीखा। यज्ञ वैदिक धर्म और संस्कृति के अपरिहार्य अंग रहे हैं।

यज्ञ के प्रकार

वैदिक ऋषियों ने यज्ञों के पांच प्रकार बताये हैं, जिन्हें पंचमहायज्ञ के नाम से भी जाना जाता है। ये पंचमहायज्ञ हैं- ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ और नृयज्ञ अथवा मनुष्ययज्ञ। इन पंचमहायज्ञों में से पितृयज्ञ का वर्णन निम्नलिखित है, जहाँ पर पितृयज्ञ को पूर्णरूप से दर्शाया गया है।

Pitra-Yagya-Kise-Kahate-Hain

पितृयज्ञ आखिर किसे कहते हैं? वीडियो देखें

पितृयज्ञ क्या है

हिन्दुओं द्वारा मृत पितरों के प्रति आज भी श्रद्धा अभिव्यक्त की जाती है। इसका मूल पितृयज्ञ में देखा जा सकता है। वस्तुतः यह भी कृतज्ञता का ज्ञापन है जो हम अपने उन पूर्वजों के प्रति प्रगट करते हैं जिनसे हमने जीवन के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ प्राप्त किया हुआ है। यही पितृयज्ञ कहलाता है शुक्लयजुर्वेद में प्रार्थना है कि सोमरस की तरह सूक्ष्म भावानात्मक स्वाधीत अस्तित्व में प्रविष्ट अग्नि द्वारा परिशुद्ध पितर देवमार्ग से आएँ, प्रकाशरूप में आगे उपस्थित हों, अपने को हमारे जीवन में प्रतिबिम्ब और चरितार्थ पाकर तृप्त हों, हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा दें, हमारे ऊपर स्नेहछाया रखें तथा हमारी रक्षा करें। मनुस्मृति में पितृयज्ञ हेतु तर्पण, बलिहरण और श्राद्ध का विधान बताया गया है।

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