मनुष्य का शरीर-समष्टि का एक अंग - व्यष्टि और समष्टि दो भिन्न तत्व नहीं हैं बल्कि यह समष्टि का ही एक अंग मात्र है। जिन मौलिक तत्वों से सृष्टि का निर्माण होता है उन्हीं तत्वों से मनुष्य के शरीर का भी निर्माण होता है। सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाय तो इस सम्पूर्ण सृष्टि का एक ही मूल तत्व आरम्भ में था जो चेतन था। इसी को समष्टि में 'ईश्वर', 'ब्रह्म' आदि नाम दिया गया तथा शरीर में उसी को 'आत्मा' कहा जाता है। इसी चेतना शक्ति से प्रकृति रूपी जड़-शक्ति का आविर्भाव हुआ जिससे एक ही चेतन तत्व दो रूपों में अभिव्यक्त हुआ। ये दोनों मिलकर ही समस्त जड़-चेतन जगत तथा विभिन्न शरीरों का निर्माण करते हैं।
इस जड़-प्रकृति के सत्व, रज व तम तीन गुण हैं। इन गुणों का उस चेतन तत्व से जब संयोग होता है तो चेतन-सृष्टि का निर्माण होता है जिसमें वनस्पति, पशु-पक्षी व मनुष्य के शरीर आते हैं। सृष्टि की उत्पत्ति में सर्वप्रथम आकाश उत्पन्न हुआ।
इसके बाद क्रम से वायु, अग्नि, जल व पृथ्वी तत्व की रचना हुई। इन पाँचों तत्वों के साथ जब चेतना शक्ति का संयोग होता है तो जीव जगत की रचना होती है। ये ही पाँच तत्व चेतना शक्ति के संयोग से मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार रूपी अन्त:करण का निर्माण करते हैं। इसी अन्त:करण से पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ व पाँच कर्मेन्द्रियाँ उत्पन्न होती हैं जिससे मनुष्य के शरीर का स्वरूप बनता है। इस प्रकार व्यष्टि व समष्टि की रचना एक ही तत्व तथा एक ही रचना प्रक्रिया से हुई है इसलिए दोनों में कोई भेद नहीं है।
मनुष्य का यह शरीर इस समष्टि का ही एक लघु संस्करण मात्र है। इसकी कोई स्वतन्त्र सत्ता नहीं है, न इसका स्वतन्त्र अस्तित्व ही है। उपरोक्त जिन पाँच मूलभूत तत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्वी) से समस्त सृष्टि की रचना हुई है उन्हीं तत्वों का जब चेतना शक्ति से संयोग होता है तो मनुष्य के शरीर की रचना होती है तथा ये ही पाँच तत्त्व उसके शरीर का रक्षण व पोषण करते हैं। इनके बिना न शरीर की रचना हो सकती है न इसका रक्षण व पोषण ही सम्भव है। इसलिए व्यष्टि और समष्टि अभेद हैं।
रेकी चिकित्सा का अर्थ
रेकी क्या है? रेकी का अर्थ? 'रेकी' एक जापानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है 'विश्वव्यापी जीवनी शक्ति' (यूनिवर्सल लाइफ फोर्स एनर्जी)। इसकी परिभाषा दी गई है कि, "वह शक्ति जो सभी पदार्थों में स्थित रहकर उसकी क्रिया का कारण है।" इस शब्द में 'रे' का अर्थ है 'विश्वव्यापी' तथा 'की' का अर्थ है 'जीवनी शक्ति' जो सभी पदार्थों के जीवन का कारण है। यह शक्ति सभी पदार्थों में व्याप्त है। भारत में इसी को 'प्राण-शक्ति' कहा जाता है।
इसके उपयोग के लिए विभिन्न धर्मों ने विभिन्न विधियाँ खोजी हैं। जापान के डॉ॰ मेकाओ उशी ने इस रेकी शक्ति द्वारा उपचार की एक नई विधि की खोज की है जिसे 'रेकी चिकित्सा' कहते हैं।
इस चिकित्सा पद्धति का आज विश्व में
सर्वत्र प्रचार बढ़ता जा रहा है जिससे कई रोगी रोग मुक्त होकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर
रहे हैं। यह एक सचेतन शक्ति है। 'रेकी', प्राणशक्ति के उपयोग की ही विधि है जो लम्बे समय से लुप्त हो चुकी थी
जिसका पुनर्जागरण डॉ॰ मेकाओ उशी ने 19वीं शताब्दी के मध्य किया।
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विज्ञान इस विषय में कुछ भी मान्यता रखता हो किन्तु उसकी मान्यताएँ अभी सृष्टि के सम्पूर्ण रहस्यों को नहीं जान सकी है। उसका कार्य-क्षेत्र पदार्थ जगत् की खोज तक ही सीमित है। चेतना शक्ति की खोज वह नहीं कर पाया है इसलिए विज्ञान की मान्यताएँ चेतना जगत् के ज्ञान के लिए प्रमाण नहीं है। अध्यात्म विद्या चेतना का ही विज्ञान है।
यह सम्पूर्ण दृश्य जगत् उस एक ही चेतना शक्ति का विस्तार मात्र है जिसके भीतर वही शक्ति उसके कण-कण में व्याप्त है। जड़ दिखाई देने वाला पदार्थ भी उसी एक चेतना शक्ति का घनीभूत रूप है जो उससे भिन्न नहीं है। वही चेतन-शक्ति सर्वव्याप्त होने से मनुष्य के भीतर भी आत्म रूप में विद्यमान है। प्राण-शक्ति इसी आत्मा की शक्ति है जो सभी प्राणियों के जीवन का आधार है। इसी शक्ति से कई प्रकार के रोगों के उपचार के लिए डॉ मेकाओ उशी ने इस रेकी' नाम से नवीन चिकित्सा पद्धति की खोज की है जिससे मनुष्य निरोग व स्वस्थ रह सकता है।
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