आहार एवं पोषण का परिचय
आहार जीवन की प्राथमिक आवश्यकता है। हम जो आहार लेते हैं उसका शरीर में पाचन किया जाता है। प्रकृति ने विभिन्न खाद्य-पदार्थों को भोजन का रूप दिया है जिसे कच्चा या पका कर हम उपयोग करते हैं। ऐसे पदार्थ हमारे पाचक अंगों द्वारा पचा लिए जाते हैं, जिनसे ऊतकों का निर्माण एवं पोषण होता है। समस्त संसार के प्रत्येक जीव का शरीर निरन्तर आंतरिक या बाह्य रूप से कोई न कोई कार्य करता रहता है। आन्तरिक कार्यों को हम बाहर से देख नहीं पाते परन्तु मानव शरीर के अन्दर क्रियाएँ निरन्तर होती रहती हैं।
जागृत या सुप्तावस्था में हमारे शरीर का कोई न कोई अंग कुछ न कुछ कार्य करता रहता है। चलने, फिरने, दौड़ने, पढ़ने या अन्य शारीरिक कार्य करते रहने से शरीर के भीतर के ऊतक टूटते-फूटते एवं घिसते रहते हैं। गति के कारण शरीर में उपस्थित पोषक तत्वों का रासायनिक क्रियाओं द्वारा ऑक्सीकरण होता रहता है जिससे रक्त में उपस्थित पोषक तत्व जलते रहते हैं और उन तत्वों की कमी होती जाती है जिसकी पूर्ति हम भोजन द्वारा करते हैं।
भोजन द्वारा हमारे शरीर की संरचना तथा मरम्मत के लिए विभिन्न पोषक तत्व मिलते रहते हैं, जिनसे हमें शक्ति मिलती है और हमारे शरीर के विभिन्न अंग अपना कार्य सुचारू रूप से करते रहते हैं। हमारे भोजन से ही टूटे ऊतकों को पुनः निर्माण कार्य के पदार्थ प्राप्त होते हैं।
Historical Background of Food And Nutrition
आहार एवं पोषण विज्ञान के सम्बन्ध में जो भी जानकारियाँ उपलब्ध हैं उनमें से अधिकांश 19वीं शताब्दी और 20वीं शताब्दी के आरम्भ में एकत्रित की गई हैं। यद्यपि पोषण विज्ञान का व्यवस्थित अध्ययन 20वीं शताब्दी में ही संसीमित है फिर भी इसके साक्ष्य मौजूद हैं कि मानव मन में इस विषय के प्रति बहुत दिनों से चली आ रही तीव्र जिज्ञासा रही है क्योंकि मानव स्वभाव से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति का होता है। इस जिज्ञासु प्रवृत्ति का ही परिणाम आज का सभ्य मानव व विकसित संसार है।
प्राचीन काल में जो मानव कन्द-मूल खाकर अपना जीवन निर्वाह करता था आज वही मानव अपने शरीर को पोषित करने वाले भोजन के बारे में निरन्तर खोजों की ओर अग्रसर है। आहार विज्ञान का इतिहास सिर्फ आहार तक ही सीमित नहीं है। इसका क्षेत्र वनस्पति, प्राणिशास्त्र, मानव शरीर एवं क्रिया विज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान आदि तक विस्तृत है। यही कारण है कि आहार एवं पोषण विज्ञान की प्रगति व नित्य नयी खोजें इन सभी विद्वानों के सहयोग से ही निरन्तर जारी हैं। पहले कई पोषण शास्त्र से सम्बन्धित सुनियोजित प्रयोग किये गये, परन्तु इनसे इस विषय में कम ही रुचि को उत्प्रेरित करना सम्भव हो सका।
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समय के साथ साथ रूचि बढ़ी और आज ये एक अति विकसित विज्ञान है जिसमें निरन्तर अनुसंधान हो रहे हैं। मानव जीवन से लगी, जुड़ी, शाश्वत समस्या होने के कारण यह एक जीवित और उत्तरोत्तर विकसित होने वाला विज्ञान है, जिसकी खोजों से आज सम्पूर्ण विश्व की मानव जाति लाभान्वित होती है। आज के युग में यह एक प्रगतिशील विज्ञान है।
पोषण की परिभाषा
स्वामीनाथन के अनुसार - पोषण शास्त्र के प्रारम्भिक इतिहास को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत विवेचित किया जा सकता है जैसे -
1. CHEMICAL NATURE OF PLANT FOODS AND ANIMAL TISSUES.
2. OBSERVATION ON RESPIRATION AND ENERGY OUTPUT IN ANIMAL AND HUMAN SUBJECTS.
3. EARLY STUDIES ON PROTEIN NUTRITION.
SCHNEIDER के अनुसार - SCHNEIDER ने पोषण शास्त्र के इतिहास को तीन अनुयुगों में बाँटा है। ये तीनों अनुयुग इस प्रकार हैं -
1. प्राकृतिक अनुयुग (NATURALISTIC ERA) - 400 B.C.-1750 A.D.
2. रासायनिक विश्लेषणात्मक अनुयुग (CHEMICAL ANALYTICAL ERA) - 1750-1900.
3. जैविक अनुयुग (BIOLOGICAL ERA) - 1900 से आज तक।
प्राकृतिक, रासायनिक व जैविक अनुयुगों के अतिरिक्त GUTHE. महोदय ने एक अन्य अनुयुग का वर्णन अपनी पुस्तक में किया है। उनके अनुसार आधुनिक समय में तृतीय अनुयुग के साथ-साथ चलता हुआ, 1955 से वर्तमान समय तक, एक और अनुयुग माना जा सकता है, जिसे-सेलूलर अथवा मोलेक्यूलर युग (CELLULAR OR MOLECULAR ERA) कह सकते हैं।
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