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छान्दोग्योपनिषद का परिचय | Chandogya Upanishad in Hindi | छांदोग्य उपनिषद

छान्दोग्योपनिषद का परिचय

छान्दोग्योपनिषद् सामवेद की तलवकार शाखा के अन्तर्गत छान्दोग्य ब्राह्मण भाग से लिया गया है। छान्दोग्य ब्राह्मण में दस अध्याय हैं, इन दस अध्यायों में से अन्तिम आठ अध्याय छान्दोग्य उपनिषद् के रूप में लिये गये हैं। छान्दोग्योपनिषद् का वर्णन मुख्य दस उपनिषदों की श्रेणी में प्राप्त होता है। यह उपनिषद् विशाल कलेवर वाले उपनिषदों में से एक है। उपनिषद् क्या हैं साथ ही उपनिषदों में योग का स्वरुप क्या है यह सब हम पहले ही जान चुके हैं। छान्दोग्य उपनिषद् के नाम के अनुरूप ही इस उपनिषद् का आधार 'छन्दः' है। 'छन्दः' यहाँ साहित्यिक पद्य रचना के प्रकार तक ही सीमित नहीं है, उसका व्यापक अर्थ है।

उपनिषद् नाम में 'छन्दः' का अर्थ है- आच्छादित करने वाला। कवि जिस सत्य का साक्षात्कार करता है, वह सत्य, वह भाव हृदयंगम करने के लिए वह साहित्यिक छन्द का प्रयोग करता है। वह सत्य या भाव जिन अक्षरों, पदों, स्वरों आदि से आच्छादित होता है, वे सब उस साहित्यिक छन्द के अंगोपांग होते हैं। इसी प्रकार ऋषि इस सृष्टि के मूल सत्य को विभिन्न माध्यमों से व्यक्त होते, प्रकृति के विभिन्न घटकों से आच्छादित हुआ देखता है। अस्तु उन सबको उन्होंने छन्द या साम या उद्गीथ के रूप में व्यक्त किया है।

छांदोग्य उपनिषद

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प्रथम एवं द्वितीय अध्याय

छान्दोग्योपनिषद् के प्रथम अध्याय में ऋचा, साम आदि के सार रूप ॐकार की व्याख्या की गयी है। देवासुर संग्राम के उपाख्यान से ॐकार अर्थात् उद्गीथ को केवल स्वर-श्वास आदि तक ही सीमित न रखकर उसे मुख्य प्राणों के स्पन्दन से जोड़ने का रहस्य समझाया है। फिर ॐकार की आध्यात्मिक, आधिदैविक उपासनाएँ समझाते हुए विभिन्न स्वरूप स्पष्ट किये गये हैं। आगे दूसरे अध्याय में 'साम' को साधुता अर्थात् श्रेष्ठता से जोड़ते हुए विभिन्न प्रकार की उपासनाओं का वर्णन किया गया है।

तृतीय एवं चतुर्थ अध्याय

छान्दोग्योपनिषद् के तीसरे अध्याय में आदित्य को देवों का मधु कहकर उसकी विभिन्न दिशाओं से विभिन्न प्रकार के अमृतों की उपलब्धि का वर्णन किया गया है। इस मधुविद्या के अधिकारियों का उल्लेख करते हुए गायत्री की सर्वरूपता सिद्ध करके आदित्य की ब्रह्मरूप में उपासना का निर्देश दिया गया है। चौथे अध्याय में सत्यकाम जाबाल का वृषभ, अग्नि, हंस एवं मुद्ग द्वारा ब्रह्म बोध कराये जाने का तथा उपकौशल को विभिन्न अग्नियों द्वारा शिक्षित किए जाने का उपाख्यान है।

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पंचम, षष्टम, सप्तम एवं अष्टम अध्याय

इस उपनिषद् का पाँचवाँ अध्याय प्राण विद्या परक है। श्वेतकेतु एवं प्रवाहण संवाद में अपतत्व का पाँचवी आहुति में व्यक्तिवाचक बन जाने तथा अश्वपति एवं ऋषियों के संवाद से प्राण की विभिन्न प्रकृतियों का उल्लेख है। छठवें अध्याय में ईश्वर एवं आत्मा के विभिन्न स्वरूपों को विभिन्न दृष्टान्तों से स्पष्ट किया गया है। सातवें अध्याय में ब्रह्म की विभिन्न रूपों में उपासना समझायी गई है। आठवें अध्याय में इन्द्र एवं विरोचन के कथानक द्वारा आत्मतत्त्व और ब्रह्मतत्त्व के साक्षात्कार के लिए तप द्वारा पात्रता अर्जित करने का महत्त्व दशाया गया है। अन्त में आत्मज्ञान की परम्परा एवं उसके फल का वर्णन है। छान्दोग्योपनिषद का परिचय इस प्रकार से प्राप्त होता है।

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