मुक्तासन का नामकरण
मुक्तासन एक ध्यानात्मक श्रेणी का आसन है। मुक्तासन का अभ्यास बहुत ही
सरल है। इस आसन का अभ्यास सामान्य व्यक्ति भी कर सकते हैं। मुक्तासन का एक अन्य नाम
है- सुखासन। इस आसन में साधक सुख पूर्वक अधिक समय तक बैठ सकता है इसलिए इसे सुखासन
भी कहा जाता है। मुक्तासन अर्थात् सुखासन का वर्णन लगभग सभी हठयौगिक ग्रंथों में
प्राप्त होता है। महर्षि घेरंड ने भी अपने हठयौगिक ग्रन्थ घेरंड संहिता में इस आसन का
वर्णन बखूबी तरीके से किया है।
मुक्तासन की विधि
मुक्तासन अर्थात् सुखासन के अभ्यास के दौरान सर्वप्रथम दोनों पैरों को सामने की ओर फैला लेते है। तत्पश्चात् बायें पैर को मोड़कर दायीं जाँघ के नीचे रखते हैं और जितना हो सके शरीर के समीप लाने का प्रयास करते हैं। फिर दाहिने पैर को बायें पैर के ऊपर रख देते हैं। इस प्रकार जब दोनों पैरो की स्थिति हो जाती है तो इसके पश्चात् ध्यान रहे की एक पैर की एड़ी दूसरे पैर की एड़ी के ऊपर रहे। पैरों की यह स्थिति मुक्तासन अर्थात् सुखासन की है।
मुक्तासन की सम्पूर्ण विधि लाभ एवं सावधानियां विडियो देखें
मुक्तासन एक ध्यानात्मक आसन है इसलिए जब दोनों पैरों की इस प्रकार की स्थिति होती है तत्पश्चात् ध्यान रखना है की सिर और धड़ दोनों एक सीध में रहें तथा सामान्य रूप से हाथों को ज्ञानमुद्रा या किसी भी ध्यानात्मक मुद्रा की अवस्था में अपने घुटनों पर रखा जाता है। आँखों को बन्द रखते हैं। पूरे शरीर को ढीला छोड़ देते हैं। यह बहुत सरल अभ्यास है और इसे भी महर्षि घेरण्ड ने एक आसन के रूप में मान्यता प्रदान की है। इस आसन का मुख्य प्रयोजन यही है कि धड, मेरुदण्ड और सिर एक सीध में रहें।
मुक्तासन के लाभ
मुक्तासन एक ध्यानात्मक आसन है। इस आसन के अभ्यास के दौरान मेरुदण्ड
के निचले भाग में दबाव पड़ता है, जिससे की तंत्रिका–तंत्र शिथिल होता है।
मुक्तासन के अन्य लाभ-
- मुक्तासन अर्थात् सुखासन ध्यान के लिए एक सर्वोत्तम आसन माना जाता है।
- मुक्तासन का अभ्यास शारीरिक एवं मानसिक स्थिरता प्रदान करने में सहायता करता है।
- जो साधक ध्यान के अन्य कठिन आसनों में नहीं बैठ सकते, वे मुक्तासन का उपयोग कर सकते हैं।
- मुक्तासन किसी प्रकार का तनाव या दर्द उत्पन्न किये बिना ही शारीरिक एवं मानसिक सन्तुलन प्रदान करता है।
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मुक्तासन की सावधानियां
मुक्तासन एक शिथिलीकरण का आसन है वरन् कुछ बातों का हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए जैसे की- जिन लोगों का शरीर बहुत कड़ा हो, वे पालथी मारकर बैठे और घुटनों एवं पीठ के चारों ओर एक कपड़ा बाँध लें। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें। एकाग्रता शारीरिक सन्तुलन एवं शरीर के भार को दायें एवं बायें भाग पर समान रूप से वितरित करने पर रहे। इस आसन में बैठने से शरीर का सारा भार नितम्बों और फर्श के बीच एक बहुत छोटे-से सम्पर्क क्षेत्र पर पड़ता है। अत: इस आसन में लम्बे समय तक बैठने से अगर इस क्षेत्र में दर्द का अनुभव हो तो इस आसन का अभ्यास रोक देना चाहिए या फिर ऐसी स्थिति में नितम्बों के नीचे तकिया रखा जा सकता है।
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