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श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व | Importance of Bhagavad Geeta | गीता का महत्व

श्रीमद्भगवद्गीता का परिचय

श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व सम्पूर्ण मानव लोक के लिए प्रासंगिक है। श्रीमद भगवतगीता ही एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें सृष्टि के सम्पर्ण आध्यात्मिक पक्षों का समावेश किया गया है। वेदों और उपनिषदों से लेकर शंकराचार्य तक के सभी मतों व मान्यताओं का सार इसमें समाहित है। इसमें संग्रहित सात सौ श्लोक सप्त महाद्वीप के समान गंभीर है। जिनको पूर्ण रूप से समझ लेने पर भारतीय चिन्तन का समस्त सार ज्ञात हो सकता है। श्रीमद्भगवद्गीता की महिमा अगाध और असीम है। यह ग्रन्थ प्रस्थानत्रय के अंतर्गत निहित है। मनुष्य मात्र के उद्धार के लिए तीन राजमार्ग प्रस्थानत्रय नाम से जाने जाते हैं, एक वैदिक प्रस्थान जिसको 'उपनिषद्' कहते हैं।

दूसरा दार्शनिक प्रस्थान जिसको 'ब्रह्मसूत्र' के नाम से जाना जाता है और तीसरा स्मार्त प्रस्थान जिसको कि 'भगवद्गीता' कहते हैं। उपनिषदों में मंत्र हैं, ब्रह्मसूत्र में सूत्र हैं और भगवद्गीता में श्लोक हैं। भगवद्गीता में श्लोक होते हुए भी भगवान की वाणी होने से ये मंत्र ही हैं। इन श्लोकों में बहुत गहरा अर्थ भरा हुआ होने से इनको सूत्र भी कहते है। 'उपनिषद्' अधिकारी मनुष्यों के काम की चीज है और 'ब्रह्मसूत्र' विद्वानों के काम की, परन्तु 'भगवद्गीता' सभी के काम की चीज है।

Bhagavadgeeta Ka Mahatva

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श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व

श्रीमद्भगवद्गीता एक बहुत अलौकिक एवं विचित्र ग्रन्थ है। इसमें साधक के लिए उपयोगी पूरी सामग्री मिलती हैचाहे वह किसी भी देश काकिसी भी सम्प्रदाय काकिसी भी समुदाय काकिसी भी वर्ण काकिसी भी आश्रम का कोई भी व्यक्ति क्यों न हो। इसका कारण यह है कि इसमें किसी समुदाय विशेष की निन्दा या प्रशंसा नहीं की गई है बल्कि वास्तविक तत्व का ही वर्णन है।

वास्तविक तत्व (परमात्मा) वह हैजो परिवर्तनशील प्रकृति और प्रकृतिजन्य पदार्थों से सर्वथा अतीत और सम्पूर्ण देशकालवस्तुव्यक्तिपरिस्थित आदि में नित्य-निरन्तरएकरस-एकरूप रहने वाला है। जो मनुष्य जहां है और जैसा हैवास्तविक तत्व वहां वैसा ही पूर्ण रूप से विद्यमान है। परन्तु परिवर्तनशील प्रकृतिजन्य वस्तुव्यक्तियों में राग-द्वेष के कारण उसका अनुभव नहीं होता। सर्वथा राग-द्वेष रहित होने पर उसका स्वतः अनुभव हो जाता है।

श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश महान तथा अलौकिक है। इस पर कई टीकाएं हो गयींकई टीकाएं होती चली जा रही हैंफिर भी सन्त-महात्माओंविद्वानों के मन में गीता के नये-नये भाव प्रकट होते रहते हैं। इस गम्भीर ग्रन्थ पर कितना ही विचार क्यों न किया जाए फिर भी इसका पार नहीं पाया जा सकता। इसमें जैसे-जैसे गहरे में उतरते जाते हैंवैसे ही वैसे इसमें से गहरी बाते मिलती चली जाती हैं। जब एक अच्छे विद्वान पुरूष के भावों का भी जल्दी अन्त नहीं होताफिर जिनका नामरूप आदि यावन्मात्रअनन्त हैऐसे श्रीभगवान् के द्वारा कहे हुए वचनों में भरे हुए भावों का अन्त हो ही कैसे सकता हैवास्तव में गीता का महत्व इस श्लोक में समाहित है-

गीता सुगीता कर्तव्याकिमन्यैः शास्त्रविस्तरैः।
या स्वयं पद्यनाभस्य मुखपद्याद्विनिः सृताः।।
गीता महात्म्य

अर्थात् गीता सुगीता करने योग्य है अर्थात् श्री गीता जी को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भावसहित अन्तःकरण में धारण कर लेना मख्य कर्तव्य हैजो कि स्वयं पद्यनाभ भगवान श्री विष्णु के मुखारविन्द से निकली है फिर अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है।

श्रीमद्भगवद्गीता ग्रन्थ में इतनी विलक्षणता है कि अपना कल्याण चाहने वाला किसी भी देशसंप्रदायमत, वर्णआश्रम आदि का कोई भी मनुष्य क्यों न होइस ग्रन्थ के पढते ही इसमें आकृष्ट हो जाता हैअगर मनुष्य इस ग्रन्थ का थोडा सा भी पठनपाठन करे तो उसको अपने उद्धार के लिए बहुत जल्द ही सन्तोषजनक उपाय मिल जाता है।

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श्रीमद्भगवद्गीता में साधकों का वर्णन करने मेंविस्तार पूर्वक समझाने मेंएक-एक साधन को कई बार कहने में संकोच नहीं किया गया हैफिर भी ग्रन्थ का कलेवर नहीं बढ़ा है। ऐसा संक्षेप में विस्तार पूर्वक यथार्थ और पूरी बात बताने वाला दूसरा कोई ग्रन्थ नहीं दीखता। अपने कल्याणकारी उत्कट अभिलाषा वाला मनुष्य सभी परिस्थिति में परमात्म तत्व को प्राप्त कर सकता हैयुद्ध जैसी घोर परिस्थति में भी अपना कल्याण कर सकता है। इस प्रकार व्यवहार में परमार्थ की कला गीता में सीखायी गयी है। अतः इसके समान दूसरा कोई ग्रन्थ देखने में नहीं आता

श्रीमद्भगवद्गीता का आश्रय लेकर पाठ करने मात्र से बडे विचित्र आलौकिक और शान्तिदायक भाव स्फूरित होते हैं। इसका मन लगाकर पाठ करने मात्र से बड़ी शान्ति मिलती है। वास्तव में इस ग्रन्थ की महिमा का वर्णन करने में कोई भी समर्थ नहीं है। अनन्त महिमाशाली ग्रन्थ की महिमा का वर्णन भला कर ही कौन सकता है। आज के इस भौतिक युग में दौड भाग करने से जब मानव अत्यन्त क्लान्त हो जाता हैथक कर चूर हो जाता हैसफलता हाथ नहीं लगतीमानसिक उद्वेग बढ़ जाता हैन इधर दिखता है न उधर। उस समय कुछ क्षण के लिए गीता के उपदेशों का पान करने मात्र से तात्कालिक शान्ति तो मिलती ही हैपुनः नये जोश के साथ सफलता पाने की उत्कट इच्छा जागृत होती है।

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