दर्शन क्या है
यह हमारे लिये अत्यन्त गौरव की बात है कि सदियों पूर्व जब विश्व के अधिकांश देश अज्ञान के अंधकार से घिरे आदिवासियों जैसा जीवन बिता रहे थे, तब हमारी इस भारत-भूमि पर ज्ञान के अनेकानेक दीप जगमगा रहे थे। ज्ञान के इन दीपों को प्रज्वलित करने वाले हमार मनीषी केवल सामान्य घटनाओं का कारण ही नहीं ढूंढते थे, वरन् जीवन की मूल समस्याओं, यथा-सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु तथा जगत् का भी कारण ढूंढते थे और इस तरह सत्य की खोज करते थे। सत्य की खोज की उनकी इस जिज्ञासु प्रवृत्ति ने ही भारत-भूमि पर दर्शन के बीज बोये, जो फिर कालान्तर में विशाल वट-वृक्ष के रूप में परिणत हुआ। निश्चय ही इस दर्शन-वृक्ष की छाया में आज भी जीवनयात्रा से थके हुए क्लांत पथिक को शीतलता प्रदान करने का सामर्थ्य है।
यहाँ उल्लेखनीय है कि भारतीय दर्शन का तात्पर्य केवल हिन्दू धर्म के दर्शन, वैदिक दर्शन अथवा आर्यों के दर्शन से नहीं है। भारतीय दर्शन का तात्पर्य सम्पूर्ण भारतवर्ष के किसी भी धर्म, सम्प्रदाय एवं जाति द्वारा चिन्तन, मनन किये गये दर्शन से है। यहाँ यह जिज्ञासा उठना स्वाभाविक है कि भारतीय दर्शन का प्रारम्भ कब हुआ तथा भारतीय चिन्तन कौन-कौन-सी धाराओं में बहा अर्थात् भारतीय दर्शन के कौन-कौन-से सम्प्रदाय थे। किन्तु इस पर विचार करने के पूर्व हम देखेंगे कि दर्शन का क्या अर्थ है।
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दर्शन का अर्थ
दर्शन शब्द 'दृश' (देखना) धातु से बना है। व्युत्पत्ति के अनुसार दर्शन का अर्थ है— 'दृश्यते अनेन इति दर्शनम्' अर्थात् जिसके द्वारा देखा जाय वह दर्शन है। अब प्रश्न उठता है कि यहाँ किसे और किसके द्वारा देखने की बात की जा रही है?
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सामान्यतया हम आँख द्वारा बाह्य जगत् के पदार्थों को देखते हैं तथा इसे ही दर्शन कहते हैं। किन्तु यहाँ हम जिस दर्शनशास्त्र की चर्चा कर रहे हैं उसका उद्देश्य आँख द्वारा सामान्य वस्तुओं को देखना नहीं, वरन् सूक्ष्म दृष्टि द्वारा सामान्य वस्तुओं और घटनाओं के भी पीछे छिपे सत्य को देखना है। इसे ही दार्शनिक चिन्तन कहते हैं। यहाँ उल्लेखनीय है कि सूक्ष्म दृष्टि में अन्तर्दृष्टि तथा तार्किक परीक्षण भी सम्मिलित है।
इसे हम एक उदाहरण द्वारा समझेंगे। मान लीजिये हम अपनी आँखों से किसी को मरते देखते हैं। यह मृत्यु का सामान्य दर्शन हुआ। किन्तु इसी मृत्यु पर, मृत्यु के पीछे सत्य पर जब हम सूक्ष्म दृष्टि से, गहराई से चिन्तन-मनन करते हैं, जैसे-हम सोचते हैं कि मृत्यु क्या है, क्या यह अनिवार्य सत्य है, क्या इससे किसी तरह बचा जा सकता है. क्या मृत्यु के बाद भी जीवन रहता है, आदि, तो इससे दर्शनशास्त्र का जन्म होता है। यही दार्शनिक चिन्तन है।
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दर्शनशास्त्र में हम इसी तरह गहराई से जगत् एवं जीव के अस्तित्व के प्रश्न पर, उनके निर्माता ईश्वर के प्रश्न पर, कर्मफलों के प्रश्न पर, दु:ख के कारण के प्रश्न पर तथा और भी इसी प्रकार के अन्य प्रश्नों पर गहराई से विचार करते है। एक और बात। दर्शनशास्त्र गहन चिन्तन द्वारा जिस सत्य की खोज करता है, वह केवल बौद्धिक खोज नहीं होती, न इसका उद्देश्य बौद्धिक वाक् विलास होता है। दर्शन में जिस सत्य की खोज की जाती है उसकी सार्थकता उसके साक्षात्कार में होती है अर्थात् दार्शनिक सत्य की साक्षात् अनुभूति प्राप्त करना चाहता है।
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