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धीरेंद्र ब्रह्मचारी का जीवन परिचय | Dhirendra Brahmachari | कौन थे धीरेंद्र ब्रह्मचारी

नाम- धीरेंद्र ब्रह्मचारी
जन्म स्थान- मधुबनीबिहार
जन्म समय- जून सन् 1924
पिता का नाम- बमभोल चौधरी
गुरु का नाम- महर्षि कार्तिकेय

धीरेंद्र ब्रह्मचारी का जन्म गांव चानपुरा बासैठ, मधुबनी, बिहार, भारत में 9 जून 1924 को हुआ था। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का बचपन का नाम धीरचन्द्र चौधरी तथा इनके पिता का नाम बमभोल चौधरी था। ब्रह्मचारी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के योग संरक्षक थे। उन्होंने दिल्ली, जम्मू, कटरा और मानतलाई (जम्मू और कश्मीर) में योग आश्रम का संचालन किया और योग विषय से सम्बन्धित विभिन्न पुस्तकें लिखी।

योग ग्रंथ श्रीमद् भगवद्गीता पढ़ने से प्रेरित होकर उन्होंने तेरह साल की उम्र में घर छोड़ दिया और वाराणसी चले गये। आध्यात्मिक गुरू की खोज में अपने परिवार का परित्याग करने के कारण उन्होंने गहन रुचि के साथ अपने आध्यात्मिक जीवन की शुरूआत एक दुरूह मार्ग के रूप में की। प्रकाश और अंधेरे के बीच लड़ाई के कई वर्षों के बाद उन्होंने गुरू के रूप में महर्षि कार्तिकेय को स्वीकार किया जिनका आश्रम लखनऊ के समीप गोपाल खेड़ा में था वह वहाँ चले गये और बारह वर्षों तक वहाँ उन्होंने योग और उससे सम्बन्धित विषयों का अध्ययन किया।

Dhirendra-Brahmachari

वहां उन्होंने योग के रहस्यों के सन्दर्भ में ज्ञान प्राप्त करना शुरू किया अपने गुरु महर्षि कार्तिकेय के दिशा निर्देशों के अनुरूप उन्होंने एक भूमिगत गुफा में प्राणायाम का अभ्यास किया और स्वंय को एक स्वामी और एक सिद्ध योगी के रूप में परिवर्तित कर योग के सर्वोच्च लोकों में प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने अपने गुरू कार्तिकेय के आदेश के अनुसार योग की शिक्षाओं का प्रचार करना शुरू कर दिया।

1956 में उन्होंने यौगिक सूक्ष्म व्यायाम पुस्तक का लेखन योग के प्रचार-प्रसार के लिये किया। 1970 में योग मुद्राओं के सही व्यवहार के बारे में उनकी दूसरी पुस्तक योगासन विज्ञान का प्रकाशन हुआ। इसके अतिक्ति योग पर विविध पुस्तकें लिखी। जम्मू के समीप स्थित उनका आश्रम बहुत भव्य और विशाल था वहाँ योग शिक्षण प्रशिक्षण से सम्बन्धित विभिन्न गतिविधियाँ संचालित होती थी। वहाँ प्रशिक्षित बहुत से शिक्षक वर्तमान समय में योग सस्थानों में विभिन्न प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं।

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1960 के दशक में उन्हें सोवियत अंतरिक्ष यात्रीओं को प्रशिक्षित करने के लिए सोवियत संघ की यात्रा के लिए आमंत्रित किया गया था। वह उस समय के हठयोग के विशेषज्ञ माने जाते थे। उन्होंने विभिन्न हठयौगिक क्रियाओं को जनसामान्य के समक्ष प्रस्तुत किया और जनमानस में हठयोग के प्रति जागरूकता उत्पन्न की। 1970 के दशक में, धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने दूरदर्शन पर एक साप्ताहिक प्रसारण, के माध्यम से लोगों को योग के प्रति जागरूक किया। इसी समय उन्होंने सरकारी स्कूलों में अध्ययन के एक विषय के रूप में योग विषय की शुरुआत करने की पहल की। उन्ही के प्रयासों द्वारा 1981 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन केन्द्रीय विद्यालय के स्कूलों में योग की कक्षाओं के संचालन का प्रारम्भ हुआ।

स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी दिल्ली में स्थित विश्वायतन योगाश्रम के संस्थापक थे जिसकी स्थापना कलकत्ता में हुयी थी और इस संस्था को दिल्ली स्थानंतरित कर दिया गया था। जिसे अब मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान के रूप में जाना जाता है।

उनके जीवन के अन्तिम दशक का समय विभिन्न आरोप प्रत्यारोपों में उलझ गया। इन आरोप प्रत्यारोपों को अलग रखकर विचार करने पर ज्ञात होता है कि स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का जीवन विभिन्न यौगिक विभूतियों से सम्पन्न था और उन्होंने योग के प्रचार-प्रसार के लिये सार्थक प्रयास किये थे। 12 फरवरी 1994 को एक निजी विमान से यात्रा करते समय उनके जीवन की लीला समाप्त हो गयी और उन्होंने अपने शरीर को त्याग दिया।

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