प्राकृतिक चिकित्सा क्या है
प्राकृतिक चिकित्सा एक स्वस्थ जीवन बिताने की एक कला एवं विज्ञान है। प्राकृतिक चिकित्सा व्यक्ति को उसके शारीरिक, मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक तलों पर प्रकृति के रचनात्मक सिद्धांतों के अनुकूल निर्मित करने की एक पद्धति है। प्राकृतिक चिकित्सा का अर्थ एवं प्राकृतिक चिकित्सा का महत्व हम पूर्व में ही जान चुके हैं। वास्तव में प्राकृतिक चिकित्सा चिकित्सा पद्धति पद्धति ही नहीं अपितु जीवन जीने की कला है। प्राकृतिक चिकित्सा से रोग ठीक किये जाते हैं पर यदि प्रकृति के अनुसार जीवन जिया जाए तो रोग होंगे ही नहीं। प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा जीवन निरोगी बनाया जा सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा का इतिहास
विज्ञान या प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली उतनी ही पुरानी है जितनी कि प्रकृति स्वयं या इसके आधार षटतत्व- महतत्व, आकाश तत्व, वायु तत्व, अग्नि तत्व, जल तत्व तथा पृथ्वी तत्व। इस तरह यह चिकित्सा प्रणाली संसार में प्रचलित सभी चिकित्सा प्रणालियों से पुरानी या उनकी जननी है। वेदों में जो संसार के आदि ग्रन्थ है इस विज्ञान की सभी मोटी-मोटी बातें जैसे जल चिकित्सा, उपवास चिकित्सा आदि पायी जाती है।
वैदिक काल के बाद पौराणिक काल में प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति प्रचलित रही। राजा दिलीप दुग्ध-कल्प एवं जंगल सेवन और राजा दशरथ की रानियों ने फल-कल्प (एक ही प्रकार का फल) के द्वारा संतान लाभ प्राप्त किया था। प्रारम्भ काल में किसी भी प्रकार की औषधि चिकित्सा नहीं थी। उपवास को लोग अचूक चिकित्सा माना करते थे और जब भी अस्वस्थ होते उपवास कर स्वस्थ हुआ करते थे। रावण काल से औषधि से औषध सेवन प्रारम्भ होने का इतिहास मिलता है।
रावण भोग विलासी एवं मदिरा पान करने वाला होने के कारण उसे
उपवास आदि प्राकृतिक चिकित्सा करने में कष्ट होता था। उसने वैद्यों को आदेश दिया
कि कुछ ऐसी खोज की जाये कि अस्वस्थ होने पर लंघन इत्यादि किये बिना चिकित्सा हो
सके। वैद्यगण ने राजा का आदेश मान कुछ जड़ी-बूटियों की खोज कर डाली और उसका लेह
अथवा काढ़ा बना कर विभिन्न बीमारियों की औषधियाँ तैयार की। इसी के पश्चात् औषधियों
का क्रम आरम्भ होकर शनैः शनैः लोगों के बीच फैलती गयी और प्राकृतिक चिकित्सा लुप्त
होती गयी। औषधि द्वारा चिकित्सा सरल होने के कारण इसकी लोकप्रियता अवश्य बढ़ती गयी
पर गलत चिकित्सा होने के कारण लोगों का स्वास्थ्य दिनों-दिन खराब होता चला गया और
आज लोगों के स्वास्थ्य का जो हाल है वह औषधि सेवन का परिणाम स्पष्टतः व्यक्त कर
रहा है।
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महाबग्ग नामक बौद्ध ग्रन्थ में एक जगह लिखा है कि एक बार
भगवान बुद्ध श्रावस्ती नगरी से राजगृह जाते समय कलंद निवाय नामक संघ में ठहरे हुये
थे। वहाँ एक दिन बौद्ध भिक्षु को सांप ने काट खाया लोगों ने उसकी सूचना भगवान
बुद्ध को दी भगवान बुद्ध ने कहा- हे भिक्षुओं! मैं तुम्हें आज्ञा देता हूँ कि
विष-नाश के लिये चिकनी मिट्टी, गोबर, मूत्र और राख का उपयोग करो। भिक्षुओं के प्रश्न करने पर कि उपर्युक्त वस्तुओं में से एक
का या सब का एक साथ उपयोग होना चाहिये। अतः इस प्राचीन घटना से इस बात का पता चलता
है कि रोग नाश के लिये मिट्टी का प्रयोग भारतवर्ष में अति प्राचीन काल से प्रचलित
है।
वास्तव में मनुष्य शरीर में रहन-सहन एवं आहार-विहार की अनियमितताओं के कारण ही समस्त रोगों का प्रादुर्भाव होता है एवं नियमित और संयमित जीवन से मनुष्य रोग मुक्त हो जाता है। प्राचीन समय के लोग वर्तमान समय की भांति न जल्दी से बूढे़ होते थे साथ ही अपना जीवनयापन प्राचीन चिकित्सा पद्धति की ही सहायता से ही किया करते थे। इस प्रकार से देखा जाय तो प्राकृतिक चिकित्सा अत्यंत प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों में से एक चिकित्सा प्रणाली रही है। प्राकृतिक चिकित्सा व्यक्ति को उसके शारीरिक, मानसिक व अध्यात्मिक तलों पर प्राकृति के रचनात्मक सिद्धांतों के अनुकूल करने की एक चिकित्सा पद्धति है।
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