शिक्षा क्या है शिक्षा का अर्थ
शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारकों को जानने से पूर्व
हमें शिक्षा का तात्पर्य एवं शिक्षा की परिभाषा जानना अत्यंत जरूरी है। जैसे की
पूर्व में हम शिक्षा शब्द का अर्थ जान चुके हैं- 'शिक्षा' शक् धातु से निष्पन्न हुआ शब्द है; जिसका मूल अर्थ है कर सकने की इच्छा। अर्थात् समर्थ होने का
संकल्प। शिक्षा का तात्पर्य जानने के पश्चात् आगे अब हम शिक्षण को प्रभावित करने
वाले कारकों को जान लेते हैं की कौन-कौन से कारक हैं जो शिक्षण को प्रभावित करते
हैं एवं भिन्न-भिन्न विद्वानों ने किस प्रकार से शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारकों को दर्शाया है।
शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारक
शिक्षण को प्रभावित करने वाले कारकों को दर्शाते हुए लब्धप्रतिष्ठ शिक्षाशास्त्री एडम्स (ADAMS), हैण्डरसन (HANDERSON), अदवाल (ADAVAL), तथा जॉन ड्यूवी (JAHN DEWEY) इत्यादि विद्वानों द्वारा निर्दिष्ट कारकों का सूक्ष्म अवलोकन करने पर मुख्यत: तीन कारक उभरकर सामने आते हैं, जो निम्नलिखित हैं-
1.
शिक्षार्थी (EDUCAND)
2.
शिक्षक (EDUCATOR)
3. पाठ्यक्रम (CURRICULUM)
1. शिक्षार्थी - मनोवैज्ञानिकों ने बाल केन्द्रित शिक्षा पर बल दिया है, इसीलिए शिक्षक से आशा की जाती है कि वह शिक्षार्थी की प्राकृतिक शक्तियों एवं जन्मजात योग्यताओं, उसकी शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक विशेषतओं, उसकी रुचियों, आदतों, आचरणों तथा उसकी पारिवारिक सामुदायिक एवं वातावरणीय विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त करे, क्योंकि इन सब बातों का ज्ञान होने पर ही वास्तव में शिक्षक बालक का उचित मार्ग दर्शन कर सकता है।
एडम्स ने लिखा है “जॉन को लैटिन पढ़ाने के लिए शिक्षक को जॉन की तरह लैटिन का ज्ञान भली-भांति होना चाहिए।” “THE TEACHER MUST KNOW BOTH LATIN AND JOHN, IN ORDER TO TEACH WELL” जॉन को समझना मनोविज्ञान तथा लैटिन को समझना विषयवस्तु है। शिक्षार्थी की शिक्षा को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित कारकों का भी महत्वपूर्ण योगदान है।
1. वंशानुक्रमण (HEREDITY) - बुद्धितत्व।
2.
पर्यावरण (ENVIRONMENT) - प्रकृति, घर-परिवार एवं पड़ोस या समाज।
3.
समय (TIME) - शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था एवं प्रौढ़ावस्था।
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2.
शिक्षक - बिना शिक्षक की सहायता के उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो
सकती है। प्राचीन एवं मध्यकाल में तो शिक्षक को सर्वे - सर्वा माना जाता था ।
शिक्षक 'शिक्षार्थी'
के अनुकूल शिक्षण - विधि का प्रयोग करता था। मूल्यांकन भी
शिक्षक द्वारा बनाये गये साधनों द्वारा होता था। मूल्यांकन का परिणाम “प्रगति पत्र" (PROGRESS
REPORT), अभिलेख पत्र (CUMULATIVE
REPORT) में तैयार किया जाता था। आज
के युग में यद्यपि शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि आदि के निर्धारण में विशेषज्ञों का विशेष हाथ
रहता है, किन्तु
अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षकों की सम्मति प्राप्त की जाती है, क्योंकि इन सब को क्रियान्वित रूप प्रदान करने का श्रेय
शिक्षकों पर ही है।
3. पाठ्यक्रम - शिक्षा का तीसरा प्रमुख कारक पाठ्यक्रम है। जब शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया (BI-POLAR PROCESS) के रूप में माना जाता था, तब शिक्षक और शिक्षार्थी शिक्षा के मुख्य अंग थे। आज शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया (TRI POLAR PROCESS) माना गया है, तो पाठ्यक्रम शिक्षा का एक मुख्य कारक बन गया है। वर्तमान में भी शिक्षा का यही स्वरूप है। यदि पाठ्यक्रम न होगा, तो शिक्षा अंधकार में मार्ग टटोलने के समान होगी। इस प्रकार पाठ्यक्रम शिक्षा को पूर्णता प्रदान करने वाला कारक है। इस प्रकार से भिन्न-भिन्न शिक्षाशास्त्रियों एवं भिन्न-भिन्न विद्वानों ने शिक्षण को प्रभावित करने वाले मूलरूप से तीन ही करक माने हैं।
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