ईशावास्योपनिषद् का परिचय
यजुर्वेद के ४०वें अध्याय को ईशावास्योपनिषद् के नाम से जाना जाता है। ईशावास्योपनिषद् को मुख्य उपनिषद् श्रृंखला में प्रथम स्थान प्राप्त है। इस उपनिषद् में इस विराट् सृष्टि के अन्तर्गत दृश्य जगत् और जीवन को 'ईश्वर का आवास' कह कर ईश्वर के सर्वव्यापी सर्वसमर्थ स्वरूप का बोध कराते हुए, जीवन को उसी के अनुशासन में गरिमामय ढंग से सुख सन्तोषपूर्वक जीते हुए उसी के साथ एकरूप हो जाने का निर्देश दिया गया है। ईशावास्योपनिषद् में कुल १८ मंत्र हैं। इसके १८ मन्त्र श्रीमद् भगवद्गीता के १८ अध्यायों की तरह महत्वपूर्ण कहे गये हैं।
ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मंत्र में जीवन और जगत् को ईश्वर का आवास कहकर जीवन सम्पदा का उपभोग मर्यादापूर्वक करने का निर्देश है।
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ईशावास्योपनिषद् के चौथे, पांचवे एवं आठवें मंत्र में परब्रह्म परमात्मा के स्वरूप का बोध है कराया गया, तो छटे, सातवें मंत्र में परब्रह्म परमात्मा के अनुभूति करने वालों के लक्षण दर्शाये गये हैं।
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क्रमांक नवें से चौदहवें मंत्र में विद्या-अविद्या तथा सृजन एवं विनाश के बीच सन्तुलन स्थापित करने का रहस्य दिया गया है। क्रमांक पंद्रह एवं सोलहवें मंत्र में परमात्मा से अपने स्वरूप का बोध कराने की प्रार्थना तथा बोध होने की मनःस्थिति का वर्णन है। क्रमांक सत्रहवें, अठ्ठारहवें मंत्र में शरीर की नश्वरता का बोध कराते हुए अग्निदेव से श्रेष्ठ मार्ग द्वारा जीवन लक्ष्य तक ले चलने की प्रार्थना की गयी है। ईशावास्योपनिषद का परिचय इस प्रकार से प्राप्त होता है।
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1 टिप्पणियाँ
Complete Notes Nhi hai sir syllabus me to issy jyada topisc hai pdf ho to please provide us
जवाब देंहटाएंThanks..