Recents in Beach

सिद्धासन की विधि लाभ सावधानियां | Siddhasana Kaise Kare | सिद्धासन के फायदे

सिद्धासन का नामकरण

सिद्धासन ध्यान के प्रमुख आसनों में से एक है। योग के अनेकानेक प्रणेताओं एवं व्याख्याकारों ने अलग-अलग अभ्यासों को सर्वश्रेष्ठ माना है। सामान्य रूप से ध्यान के चार प्रमुख आसन माने जाते हैं- पद्मासन, सिद्धासन, स्वस्तिकासन और सुखासन। लेकिन योग के सभी व्याख्याकारों ने इन चार आसनों को अपनी पूर्ण सहमति प्रदान की है। इनके अतिरिक्त ध्यान के और भी आसन हैं, लेकिन ये चार प्रमुख माने गये हैं। सिद्धासन का वर्णन हठयोग के ग्रंथ घेरंड संहिता में बत्तीस आसनों में से सर्वप्रथम प्राप्त होता है। सिद्धासन साधकों को सिद्धि प्रदान करने में सहायक है इसलिए इस आसन को सिद्धासन के नाम से जाना जाता है।

सिद्धासन की विधि

सिद्धासन का अभ्यास करने के लिए सर्वप्रथम दोनों पैरों को सामने की ओर फैला लेते हैं। तत्पश्चात् दाहिने पैर को मोड़कर दाहिनी एड़ी को ठीक गुदा द्वार पर रखते हैं, जिससे गुदा द्वार पर दबाव पड़े। जब तक एड़ी का हलका दबाव सिवनी पर न पड़ने लगे तथा जब तक सुविधा का अनुभव न हो तब तक अपने शरीर को हिला डुला कर व्यवस्थित करें। पुनः बायें पैर को मोडकर बायीं एडी को दाहिनी एड़ी के ऊपर इस प्रकार रखते हैं कि टखने आपस में एक दूसरे का स्पर्श करते रहें और प्रजननेन्द्रिय पर दबाव पड़े।

सिद्धासन के फायदे

सिद्धासन की सम्पूर्ण विधि लाभ एवं सावधानियां विडियो देखें

अभ्यास के दौरान यदि इस अन्तिम अवस्था में कठिनाई का अनुभव हो तो अपनी बाँयी एड़ी को सरलतापूर्वक श्रोणि के अधिकतम निकट रखने का प्रयास करें। इसके बाद पैरों को इसी स्थिति में बाँध दिया जाता है। दाहिने पैर की अंगुलियों को, जो नीचे है, बायीं जाँघ और पिण्डलियों के बीच से ऊपर खींच लेते हैं। बायें पैर की अंगुलियों को दाहिनी जाँघ और पिण्डली के बीच में घुसा देते हैं। तत्पश्चात् मेरुदण्ड को सीधा रखते हुए दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा या अन्य ध्यान की मुद्रा में रखते हैं। यह स्थिति सिद्धासन की है अर्थात् यह आसन सिद्धासन कहलाता है

सिद्धासन के लाभ

सिद्धासन एक ध्यानात्मक आसन है इस आसन से मेरुदण्ड की स्थिरता को बनाये रखा जा सकता है, जो ध्यान के लिए बहुत आवश्यक है। सिद्धासन के अन्य लाभ-

  • सिद्धासन मूलाधार चक्र पर दबाव डालता है, जिससे मूलबन्ध स्वतः लग जाता है।
  • सिद्धासन प्रजनक हार्मोनों के स्राव को नियन्त्रित करता है, जो आध्यात्मिक प्रगति के लिए आवश्यक है।
  • सिद्धासन मूलाधार क्षेत्र में रक्त आपूर्ति की कमी तथा चक्रों में प्राण-प्रवाह के पुनर्सन्तुलन में सहायक है।
  • सिद्धासन का अभ्यास स्वाधिष्ठान क्षेत्र पर दबाव डालता हैजिससे वज्रोली व सहजोली मुद्रा भी स्वतः लग जाती है।

इन्हें भी पढ़ें -

सिद्धासन की सावधानियां

इस आसन का अभ्यास सभी कर सकते हैं। केवल ऐसे व्यक्तियों को यह अभ्यास नहीं करना चाहिए जिन्हें साइटिका हो या रीढ़ की हड्डी के निचले भाग में गड़बड़ी हो या फिर अण्डकोष बढ़ा हुआ हो, क्योंकि बहुत बार जब बिना अभ्यास के इस आसन को लोग करते हैं, तब यदि अण्डकोष बढ़ा हुआ हो तो फट जाता है, जिसके कारण पानी थैली में आ जाता है और दर्द होने लगता है।

अगर आप इच्छुक हैं तो योग विषयक किसी भी वीडियो को देखने के लिए यूट्यूब चैनल पर जाएं। साथ ही योग के किसी भी एग्जाम की तैयारी के लिए योग के बुक्स एवं टूल्स स्टोर पर जाएं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ