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शाण्डिल्योपनिषद् का परिचय | Shandilya Upanishad in Hindi | शांडिल्य उपनिषद

शाण्डिल्योपनिषद् का परिचय

यह शांडिल्य उपनिषद अथर्ववेद से संबंधित उपनिषद् है। उपनिषदों का परिचय एवं उपनिषदों में योग विद्या का स्वरुप क्या है इन विषयों पर हम पूर्व में ही चर्चा कर चुके हैं। इस उपनिषद् में महर्षि शांडिल्य और मुनि अथर्वा के बीच प्रश्नोत्तरों का वर्णन प्राप्त होता है इसलिए इस उपनिषद् को शाण्डिल्योपनिषद् के नाम से जाना जाता है। इस शाण्डिल्योपनिषद् में कुल तीन अध्याय हैं, जिनमें महर्षि शांडिल्य और मुनि अथर्वा के प्रश्न-उत्तर के रूप में 'योग विद्या' का संपूर्ण विवरण प्रस्तुत किया गया है।

पहला अध्याय 11 खंडों के साथ विस्तृत है। यह ऋषि शांडिल्य की आत्मा को प्राप्त करने के साधन के रूप में अष्टांग योग के प्रश्न से शुरू होता है। महान मुनि अथर्वा ने अपने उत्तर में अष्टांग योग का विस्तृत विवरण दिया है। 

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यम-नियम को दस-दस बताकर पातंजल योग से इसकी विशिष्टता सिद्ध करते हैं। उन्होंने विशेष रूप से नाड़ी शोधन की प्रक्रिया का उल्लेख किया, ताकि व्यक्ति जीवन शक्ति पर विजय प्राप्त कर सके और कई सिद्धियों को प्राप्त कर सके।

Shandilya Upanishad in Hindi

दूसरे अध्याय में, ऋषि शांडिल्य ने महान ऋषि अथर्वा से ब्रह्म विद्या का रहस्य पूछा, जिसके उत्तर में महान ऋषि ब्रह्म की सर्वव्यापी प्रकृति, उसकी अवर्णनीयता, उसके पारलौकिक रूप की व्याख्या करते हैं और कहते हैं, 'वह ब्रह्म तुम हो, इसे ज्ञान द्वारा जानो। उपरोक्त यह सब वर्णन शाण्डिल्योपनिषद् के द्वितीय अध्याय में प्राप्त होता है

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उपनिषद् के तीसरे अध्याय में, ऋषि शांडिल्य ने फिर पूछा कि ब्रह्म, जो एक अविनाशी, निष्क्रिय, शिव, सत्व-मात्र और स्व-रूप है, उसके द्वारा ब्रह्मांड की रचना, पोषण और विनाश कैसे किया जा सकता है? इसके उत्तर मेंमहान ऋषि ने ब्रह्म के स्थूलशुद्ध और स्थूल-निष्कल के बीच का अंतर समझाया और कहा कि सृष्टि ब्रह्म के स्थूल-शुद्ध रूप में अपने संकल्प से ही प्रकटविकसित और विलीन होती रहती है।

अंत में ब्रह्म, आत्मा, महेश्वर और दत्तात्रेय शब्दों के चयन को प्रस्तुत करते हुए उन्होंने दत्तात्रेय पर निरंतर ध्यान करने की बात कही और कहा कि इस ध्यान से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और परम कल्याण (मोक्ष) का अधिकारी बन जाता है। शाण्डिल्योपनिषद् का परिचय इस प्रकार से प्राप्त होता है।

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