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अध्यात्म उपनिषद का परिचय | Adhyatma Upanishad in Hindi | अध्यात्मोपनिषद

अध्यात्मोपनिषद् का परिचय

यह अध्यात्मोपनिषद् शुक्ल यजुर्वेद से सम्बद्ध उपनिषद् है। उपनिषद् क्या हैं, सम्पूर्ण परिचय, उपनिषदों की कुल संख्या एवं उपनिषदों में योग का स्वरुप क्या है इन विषयों पर हम पूर्व में चर्चा कर चुके हैं। इस उपनिषद् में अपने नाम के अनुरूप ही आत्म तत्व के साक्षात्कार का विषय प्रतिपादित है। अज (अजन्मा ) रूप में यह सभी चराचर घटकों में संव्याप्त है; किन्तु वे (प्राणी) इसे नहीं जानते। यह समझाते हुए 'सोऽहम्' एवं 'तत्वमसि' आदि सूत्रों के आधार पर शरीर और विकारों से ऊपर उठकर आत्म साधना में रत रहने का निर्देशन किया गया है।

Adhyatma Upanishad in Hindi

तत्पश्चात् स्वप्न, सुषुप्ति आदि स्थितियों से ऊपर उठते हुए निर्विकल्प समाधि अवस्था में परमात्मतत्व से एक रस होने की बात कही गयी है। इस समाधि अवस्था को 'धर्ममेघ' कहकर उसी में सभी वृत्तियों को लीन करके मुक्ति अवस्था पाने का सुझाव दिया गया है।

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जीवन्मुक्त अवस्था का वर्णन करते हुए उस स्थिति में प्रारब्ध कर्म के भी समाप्त हो जाने की बात समझायी गयी है; लेकिन यह स्पष्ट कर दिया गया है कि उक्त अवस्था पाने के पूर्व किए गये कर्मों का प्रारब्ध फल अवश्य भोगना पड़ता है।

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इन्द्रिय वृत्तियों की तरह प्रारब्ध कर्म भी केवल देहाभिमानियों को ही बाँधते हैं। गुरु- अनुशासन का अनुगमन करके शिष्य को ऐसी अवस्था प्राप्त होने पर उसका क्या प्रतिफल प्राप्त होता है, इसका वर्णन करते हुए इस औपनिषदीय ज्ञान के हस्तान्तरण की परम्परा बतायी गयी है। अध्यात्मोपनिषद् का परिचय इस प्रकार से प्राप्त होता है।

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