आसन का अर्थ एवं परिभाषा
घेरंड संहिता ग्रन्थ में वर्णित बत्तीस आसनों के वर्णन से पूर्ण हमें घेरंड संहिता का परिचय जानना आवश्यक है। घेरंड संहिता ग्रन्थ हठयोग का ग्रन्थ है घेरंड संहिता के प्रथम अध्याय में महर्षि घेरण्ड ने अपने शिष्य राजा चण्डकपालि को शुद्धिकरण की मख्य छ: क्रियाओं की शिक्षा दी है, जिन्हें षट्कर्म के नाम से जाना जाता है। योगासनों का अभ्यास आरम्भ करने के पूर्व इन क्रियाओं की प्राथमिक आवश्यकता है। घेरंड संहिता ग्रन्थ के द्वितीय अध्याय में महर्षि ने राजा को विभिन्न उपयोगी योगासनों से परिचित कराया है।
हठयोग के अनुसार आसनों की शिक्षा सबसे पहले भगवान शिव ने माता पार्वती
को दी थी। परम्परा के अनुसार चौरासी लाख आसन माने जाते हैं, लेकिन इन सभी चौरासी लाख आसनों को आज कोई नहीं जानता। इनमें से चौरासी आसन प्रमुख माने जाते हैं, जिनकी शिक्षा आज समाज में दी जाती है। महर्षि घेरंड ने तो अपने ग्रन्थ में घेरंड संहिता में बत्तीस आसनों को ही महत्व दिया है, इसी प्रकार से स्वामी स्वात्माराम ने भी अपने ग्रन्थ हठप्रदीपिका में पंद्रह आसनों को ही स्वीकार किया है
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घेरंड संहिता के अनुसार शुद्धिकरण अर्थात् षट्कर्म के बाद आसनों का अभ्यास शारीरिक स्थिरता एवं दृढ़ता के लिए किया जाता है। यहाँ दृढ़ता का अर्थ है- शरीर का स्थिर होना। आसनों के अभ्यास में यह ध्यान रखना चाहिए कि आसन शरीर की एक स्थिति है। जब हम शरीर की एक स्थिति में लम्बी अवधि तक बिना हिले-डुले, बिना किसी तनाव के, बिना किसी शारीरिक कष्ट के सुखपूर्वक बैठ सकते हैं, तब वह स्थिति आसन कहलाती है। महर्षि पतंजलि ने भी अपने ग्रन्थ योगसूत्र में आसन की परिभाषा दी है- 'स्थिरं सुखमासनम्' अर्थात् जिस शारीरिक स्थिति में आप स्थिर रह सकें और सुख का अनुभव करें, वह आसन है।
अभ्यास के दृष्टिकोण से आसनों को दो भागों में विभक्त किया गया है- गतिशील आसन और स्थिर आसन। प्रारम्भ में अपने शरीर को नियन्त्रण में लाने के लिए, शरीर को लचीला बनाने के लिए गतिशील आसनों का अभ्यास किया जाता है। जब हम एक लम्बे समय तक अपने शरीर को एक स्थिर आसन में रखने का प्रयास करते हैं, तब शरीर की मांसपेशियों में दर्द और तनाव उत्पन्न होता है, जिसके कारण विक्षेप की स्थिति आती है; क्लेश और दुःख होता है, जो आसनों का ध्येय नहीं है। गतिशील आसनों के पश्चात् जैसे-जैसे हमारे शरीर की क्षमता में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे स्थिर आसन का अभ्यास प्रारम्भ करते हैं।
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आसनों के अभ्यास से शरीर पर कुछ सूक्ष्म प्रभाव पड़ते हैं। श्वसन प्रक्रिया में परिवर्तन आता है। आसनों के अभ्यास से धीमी और गहरी श्वास लेने की आदत हो जाती है, इससे मानसिक और भावनात्मक सन्तुलन प्राप्त होता है। आसनों का उद्देश्य हमें शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति दिलाना है। आसन शरीर के जोडों को लचीला भी बनाते हैं। वे शरीर की मांसपेशियों के खिचाव उत्पन्न कर उन्हें स्वस्थ बनाते हैं तथा शरीर से विषाक्त तत्वों को बाहर निकाल फेंकते हैं। आसन तन्त्रिका तन्त्र के कार्यकलापों में सामंजस्य उत्पन्न करते और हलकी मालिश द्वारा शरीर के आन्तरिक अंगों की कार्यक्षमता को बढाते हैं। इस प्रकार धीरे-धीरे शरीर स्वस्थ बन जाता है।
महर्षि घेरण्ड ने राजा चण्डकपालि को शारीरिक स्थिरता के लिए बत्तीस आसनों
की शिक्षा दी है। वे कहते हैं कि इस जगत् में जितने भी प्राणी हैं, उन सभी की सामान्य शारीरिक स्थिति को आधार बनाकर
एक-एक आसन की खोज की गयी है। घेरंड संहिता में आसनों का वर्णन द्वितीय साधन में किया गया है इन 32 आसनों का वर्णन निम्नांकित है-
घेरंड संहिता में वर्णित बत्तीस आसनों के नाम
द्वात्रिंशदासनान्येव मत्य सिद्धिप्रदानि च॥4॥
महर्षि घेरंड कहते हैं की इस मृत्यु लोक में, जहाँ प्रत्येक मानव की मृत्यु अनिवार्य है, सिद्धि प्राप्ति के लिए उपर्युक्त बत्तीस आसन ही पर्याप्त हैं। इन सभी आसनों के नाम सरल भाषा में आगे दिए गये हैं- (1) सिद्धासन (2) पद्मासन (3) भद्रासन (4) मुक्तासन (5) वज्रासन (6) स्वस्तिकासन (7) सिंहासन (8) गोमुखासन (9) वीरासन (10) धनुरासन (11) मृतासन (शवासन) (12) गुप्तासन (13) मत्स्यासन (14) मत्स्येन्द्रासन (15) गोरक्षासन (16) पश्चिमोत्तानासन (17) उत्कट आसन (18) संकट आसन (19) मयूरासन (20) कुक्कुटासन (21) कूर्मासन (22) उत्तान कूर्मासन (23) मण्डूकासन (24) उत्तान मण्डूकासन (25) वृक्षासन (26) गरुड़ासन (27) वृषासन (28) शलभासन (29) मकरासन (30) उष्ट्रासन (31) भुजंगासन (32) योगासन। इन आसनों का वर्णन क्रमश: चैनल व वेबसाइट पर दिया गया है।
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